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________________ वृत्ति के संदर्भ में अर्थ का वोध आध्यात्मिक व्यक्तित्व की चौथी कसौटी है वृत्ति के सन्दर्भ में सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति का बोध। आज का समाज सबसे ज्यादा आर्थिक परिस्थिति से दबा हुआ है। आर्थिक प्रभाव इतना है कि अर्थ को ही सब कुछ मान लिया गया। अर्थशास्त्र की कुछ ऐसी अवधारणाएं सामने आयी हैं जिनसे मनुष्यता प्रभावित हुई है। एंजिल्स, जो मार्क्स के साथी थे, ने कहा-'हमारे सिद्धान्तों को तोड़-मरोड़ कर यह निष्कर्ष निकाला गया है-आर्थिक पहलू ही जीवन का निर्णायक पहलू है। जबकि मैंने ऐसा नहीं कहा।' आज के इस अर्थप्रधान युग में, प्रतिस्पर्धा के युग में हर आदमी में यह धारणा बन गयी-अर्थ ही सब कुछ है। जो मात्र प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन था, उसे जीवन का साध्य बना लिया, परम पद पर बिठा दिया। इस भ्रान्ति ने आदमी को बहुत दुःखी बनाया है। आज आदमी के दुःख का सबसे बड़ा कारण है अर्थ को सब कुछ मान लेना। उसके सामने सब कुछ गौण है। इस मनोवृत्ति ने समाज के सामने अनगिनत समस्याएं पैदा की हैं। मूल है वृत्ति आध्यात्मिक व्यक्तित्व की कसौटी है वृत्ति के सन्दर्भ में अर्थ को देखना। आध्यात्मिक व्यक्ति अर्थ को स्थान देगा, किन्तु आन्तरिक वृत्तियों की अवहेलना कर अर्थ को स्वीकार नहीं करेगा। अर्थ का प्रभाव है, समाज का प्रभाव है, इस सचाई को स्वीकार करना ही होगा। किन्तु वृत्ति के प्रभाव को अस्वीकार कर अर्थ और समाज के प्रभाव को स्वीकार करना अपने आप में बड़ी भ्रान्ति है। आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियां तव वाधित करती हैं, जब हम वृत्ति पर ध्यान नहीं देते। मनुष्य की वृत्ति मूल है और वह प्रभावक तत्त्व है, उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आज की शिक्षा में यही तो हो रहा है। शिक्षा में अर्थाभिमुखता है, समाजाभिमुखता है, किन्तु स्वाभिमुखता नहीं है, अपनी वृत्ति की ओर उन्मुखता नहीं है। एक विद्यार्थी को यह नहीं बताया जाता कि तुम्हारे भीतर वृत्तियां हैं और वे ही आर्थिक स्पर्धा पैदा करती हैं। वे वृत्तियां ही समाज में समस्याएं पैदा करती हैं। वे आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण : १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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