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रूप में शिक्षा की कल्पना इन्हीं दो सत्यों पर आधारित है ।
आध्यात्मिक व्यक्तित्व की कसौटी
आध्यात्मिक वह होता है, जिसमें आत्मौपम्य की भावना का विकास होता है । यह चेतना जाग जाती है कि जैसी मेरी आत्मा है, वैसी ही आत्मा सबमें विद्यमान है। प्रत्येक प्राणी में वैसी ही आत्मा है, जैसी मेरी है और मुझमें वैसी ही आत्मा है, जैसी दूसरों में है । यह आत्मतुला का तराजू एक है सबके लिए । जिसमें यह चेतना जाग जाती है, वह आध्यात्मिक व्यक्तित्व है ।
इन्द्रियजयी
जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों और मन पर संयम करने का मूल्य समझ लेता है, वह आध्यात्मिक व्यक्तित्व है । इन्द्रियों की अतृप्ति, उनकी वासनाएं, लालसाएं असीम हैं । जो व्यक्ति इनका संयम न करे, वह समाज के लिए वरद नहीं बन सकता, सुखद नहीं बन सकता। आज की बड़ी समस्या है - शासक है, किन्तु इन्द्रियजयी नहीं है। समाज का मुखिया है, बहुत बड़ा उद्योगपति है, किन्तु इन्द्रियजयी नहीं है । चाणक्य ने कहा था- जो समाज का नेतृत्व करता है, उसे सबसे पहले इन्द्रियजयी होना चाहिए। वह इन्द्रियजयी नहीं होगा तो सारी प्रजा को कष्ट देगा, दुःखी बना देगा। पहली शर्त है इन्द्रियजयी होना । आध्यात्मिक व्यक्तित्व की भी यही शर्त है - व्यक्ति इन्द्रिय के वश में न रहे, किन्तु इन्द्रियों को वश में रखे । मन बड़ा चंचल होता है । वह मन के अधीन न रहे, बल्कि मन को अपने अधीन बनाए ।
दमित वासनाओं का परिष्कार
आध्यात्मिक व्यक्तित्व की तीसरी कसौटी है दमित वासनाओं का परिष्कार । कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होता, जिसमें वासना न हो । न जाने कितने जन्मों की वासनाएं, कितने जन्मों के संस्कार हमारे जीवन के साथ जुड़े हैं । उन दमित वासनाओं का परिष्कार करते जाएं, तो सब ठीक रहेगा । यदि उनका परिष्कार नहीं कर पाता, उनके अधीन चलता है, तो व्यक्ति स्वयं विकृत बनता है और समाज को भी विकृत बनाता है । आध्यात्मिक व्यक्ति वह है जो परिष्कार करना जानता है और परिष्कार करने का प्रयत्न करता है ।
१६८ : नया मानव : नया विश्व
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