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आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण
महावीर ने कहा- स्वयं सत्य खोजो । यह एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है । आज का वैज्ञानिक सत्य की खोज करता है यंत्रों के आधार पर, सूक्ष्मदर्शी माइक्रोस्कोप, टेलीस्कोप के आधार पर । महावीर ने कहा- 'जिन उपकरणों का तुम निर्माण करते हो और जिन उपकरणों के माध्यम से तुम सत्य की खोज करते हो, वे उपकरण तुम्हारे स्वयं के भीतर विद्यमान हैं । तुम्हारी चेतना में विकास की असीम संभावनाएं हैं। उसे विकसित कर लो तो . सूक्ष्मदर्शी यंत्रों का सहारा लिए बिना सूक्ष्म, विप्रकृष्ट और व्यवहित सत्य को जान सकते हो । पूरा सत्य तुम्हारे सामने हैं, पूरा आकाश तुम्हारे सामने है, पूरा काल तुम्हारे सामने है । ऐसे सत्य की अनुभूति हो सकती है, ऐसी चेतना का जागरण हो सकता है, जो देशातीत और कालातीत है, जहां देश और काल की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं ।
भौतिक दृष्टि
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आज का वैज्ञानिक भी सत्य खोज रहा है। उसने बहुत सूक्ष्म नियमों की खोज की है और इतनी सूक्ष्मता से छानबीन की है कि परमाणु तक पहुंच गया है सत्य की खोज की वैज्ञानिक दृष्टि बन गयी, किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि नहीं वनी, मैत्री का विकास नहीं हुआ । विकास हुआ अणु अस्त्रों का, जैविक रासायनिक अस्त्रों का, रश्मि अस्त्रों का, जिनसे कुछ ही मिनटों में इस संपूर्ण विश्व को समाप्त किया जा सके। यह आज के मनुष्य की भौतिक दृष्टि है ।
सत्य खोजो और जो सत्य, सूक्ष्म रहस्य ज्ञात हो जाए, उसके साथ मैत्री करो । प्राणीमात्र के साथ, जीव जगत् के साथ मैत्री करो । जीवन विज्ञान के
आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण : १६७
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