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________________ ( आचार्य महाप्रज्ञ ) ने लिखा है। उन्होंने कहा- यह हमारी बायोकेमिस्ट्री में सौ वर्ष बाद आने वाली हाइपोथिसिस होगी। कहां से आया यह स्रोत ? अणुव्रत के संपादक ने उनकी जिज्ञासा प्रस्तुत करते हुए पूछा - इसका स्रोत आपको कहां से मिला ? हमने कहा- कहीं से चुराया नहीं है। हम इसे बाहर से नहीं लाए हैं। बौद्धिक संपदा चुराई नहीं जाती, अर्जित की जाती है। आज तो अमेरिका बौद्धिक संपदा पर नियंत्रण लगा रहा है । हमने कहीं से आयात नहीं किया है । यह हमारा पुराना स्रोत है और इतना समृद्ध है कि किसी को भी आश्चर्य हो सकता है । दोनों के लिए अवकाश प्रेक्षाध्यान में इस प्रकार पुराने स्रोतों और नवीन वैज्ञानिक खोजों का सम्यक् समन्वय किया गया है । प्रेक्षाध्यान की पद्धति इसीलिए एक लचीली पद्धति है । आज भी उसमें नया जोड़ने के लिए अवकाश है। पुराने का संकलन और नए का समन्वय - दोनों के लिए द्वार खुले हैं। पूज्य गुरुदेव ने प्रारंभ से ही एक सूत्र दिया - न प्राचीनता का मोह हो और न नए से एलर्जी। दोनों ही चाहिए । इसीलिए हम न पुराणपंथी रहे और न नवीनपंथी । जो बातें पुरानी अच्छी हैं, उनका उपयोग करें और जो नई बातें आज प्रकाश में आ रही हैं, उनका भी उपयोग करें। हमारा यह अनेकान्तवादी दृष्टिकोण प्रेक्षाध्यान का मूल आधार बना है । मंत्रदाता प्रेक्षाध्यान के आधार - सूत्रों का यह एक संक्षिप्त विश्लेषण है, जिसका प्राचीन स्रोत है, ऋषभ एवं भरत । वर्तमान युग में मंत्रदाता हैं - पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी । शक्ति तो हर व्यक्ति में होती है, किन्तु उस शक्ति को जागृत करने वाला चाहिए। मैं स्वयं अनुभव करता हूं-अगर नथमल नाम का छोटा-सा बच्चा तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित नहीं होता, पूज्य कालूगणी का वरदहस्त उस पर नहीं टिकता और मुनि तुलसी के पास शिक्षा-दीक्षा का अवसर नहीं मिलता तो शायद वह इस रूप में (आचार्य महाप्रज्ञ) में प्रतिष्ठित नहीं हो पाता । कर्म सिद्धान्त का एक सूत्र है- बहुत बार शक्तियां सुप्त ही १६२ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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