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रह जाती हैं। एक गुरु का मार्गदर्शन और वरदहस्त प्राप्त होता है तो वे जाग जाती हैं। मैंने तो यह अनुभव किया है-आचार्य तुलसी ने मुझे जितने अवसर दिए हैं, कोई गुरु अपने शिष्य को इतने अवसर देता है, इतिहास में यह अनुसंधान का विषय होगा। उन अवसरों की बहुत लंबी तालिका है। यदि यह ध्यान पद्धति के अन्वेषण का आदेश न मिलता तो जैसे मैं थोड़ा-बहुत ध्यान करता था, वैसा करता रहता, किन्तु प्रेक्षाध्यान की पद्धति का प्रणयन नहीं होता। ___ हर बीज यह सोच सकता है कि मुझमें पेड़ बनने की शक्ति है। वह पेड़ बनने की प्रक्रिया भी शुरू कर सकता है किन्तु माली अगर रूठ जाए कि मैं पानी के रूप में सिंचन नहीं दूंगा तो उसके पेड़ बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा। माली पानी से सींचता है और पवित्र भावना से सींचता है, तभी पेड़ पल्लवित और पुष्पित होता है। शक्ति का महत्त्व है, किन्तु उससे भी ज्यादा महत्त्व है उसे जागृत करने वाले का। मंत्र का महत्त्व है, किन्तु उससे भी ज्यादा महत्त्व है मंत्रदाता का। हमारा यह सौभाग्य है कि गुरु के रूप में हमें आचार्य तुलसी मिले, जिनका ध्यान की इस पद्धति को विकसित करने का आदेश मिला, प्रेरणा और मार्ग-दर्शन मिला, एक ऐसी पद्धति विकसित हो गई, जिसमें नए मानव और नए विश्व की संरचना का सामर्थ्य सन्निहित है।
प्रेक्षाध्यान के मूलस्रोत : १६३
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