________________
जो प्रयोग करवा रहे हैं, वह निराधार नहीं है। उसका एक वैज्ञानिक आधार भी है। अनुप्रेक्षा एक प्रयोग है अनुप्रेक्षा का। बारह अनुप्रेक्षा या सोलह अनुप्रेक्षा-ये बहुत प्राचीनकाल से प्रचलित हैं। कुन्दकुन्द ने बारह अनुप्रेक्षा पर लिखा। स्वामी कार्तिकेय ने इस पर लिखा। विनयविजयजी ने लिखा, अनेक आचार्यों ने लिखा। किन्तु यह सौभाग्य पूज्य गुरुदेव की अनुकंपा और अनुग्रह से हमें मिला कि अनुप्रेक्षा की पद्धति को हमने विकसित किया। शब्द तो प्राचीन थे। कायोत्सर्ग शब्द भी ग्रन्थों में बार-बार मिलता है-एक साधु को दिन में इतनी बार कायोत्सर्ग करना चाहिए किन्तु इनकी पद्धति को विकसित करने का श्रेय हमें है। अनुप्रेक्षा की पद्धति विकसित हुई और आज पचीस-तीस अनुप्रेक्षा के प्रयोग सामने हैं। स्वभाव परिवर्तन के लिए अनुप्रेक्षा का प्रयोग शायद सबसे शक्तिशाली प्रयोग है। पुरानी आदत को मिटाने और नए संस्कार के निर्माण हेतु अनुप्रेक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है। लचीलापन पहले कायोत्सर्ग का एक प्रयोग कराते थे, किन्तु जैसे-जैसे गहराई में उतरते गए, स्रोत मिलते गए। आज कायोत्सर्ग की पांच विधियां हमने विकसित कर ली हैं। इन सब विधियों की खोज में हमें हठयोग, तंत्र, शैव-साधना पद्धति, विज्ञान भैरव आदि-आदि ग्रन्थों का यत्किंचित् मात्रा में स्रोत और सहयोग मिला है। हमने उनका भी उपयोग किया है। हम रूढ़ परंपरावादी नहीं बने। कछ लोग ऐसे हैं, जो कहते हैं-जो पुराना है, उससे हम एक अक्षर भी इधर-उधर नहीं होंगे। यह उनका अभिमत है। किन्तु हमें जो गुरु मिले हैं, वे लचीले हैं, उनमें रूढ़ता नहीं है। यही भूमि का मध्य है, ऐसी आग्रह युक्त दृष्टि हमारी नहीं है।
किसी ने पूछा-भूमि का मध्य कहां है ? हाथ में लाठी थी, लाठी गाड़ दी और कहा-यह भूमि का मध्य है। इसका प्रमाण क्या है ? उत्तर मिला- 'नाप लो।'
१६० : नया मानव : नया विश्व
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org