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________________ है। हठयोग में इसका आकार चक्र जैसा या कमल जैसा बतलाया गया है। किन्तु 'धवला' में स्वस्तिक, कलश, चक्र, शंख, पद्म आदि इसके अनेक प्रकार के आकार बतलाए गए हैं। नाभि से ऊपर के केन्द्रों के आकार प्रशस्त होते हैं और नाभि से नीचे के जो चैतन्यकेन्द्र हैं, उनके आकार अप्रशस्त होते हैं। पशुओं में नीचे के केन्द्र ज्यादा जागृत रहते हैं और मनुष्य यदि साधना करे तो वह ऊपर के केन्द्रों को जागृत कर सकता है, विशिष्ट शक्तियों को प्राप्त कर सकता है। आधार लेश्या ध्यान का लेश्याध्यान का प्रयोग. आकस्मिक ढंग से हुआ। न कभी सोचा था, न कभी चिन्तन किया था। शिविर में गए, ध्यान का प्रयोग कराना था। एक मिनट पहले सोचा-क्या कराएं और दूसरे ही मिनट लेश्याध्यान का प्रयोग चालू हो गया। बाद में उसका स्रोत खोजा और वह मिल गया। लेश्या हमारे भावों का प्रतिनिधित्व करने वाली, व्याख्या करने वाली एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है। जयाचार्य ने रंगों के ध्यान का अच्छा वर्णन किया है। इस विषय में उनके दो ग्रन्थ हैं-छोटा ध्यान और बड़ा ध्यान। दो छोटे ग्रन्थों में रंगों का ध्यान करने की बहुत अच्छी पद्धति मिली। अप्रमाद केन्द्र आधार विकसित होते गए। हमने कान पर प्रयोग कराए। इसका नाम रखा अप्रमाद केन्द्र । यदि पूछे-यह नाम क्यों रखा गया ? इसका बोध उस समय नहीं था किन्तु यह नाम निर्धारित हो गया। इसका प्रयोग करने से नशे की आदत बदलती है। यह प्रयोग हम वि. सं. २०३२ से करा रहे थे। वि. सं. २०३५ में पूज्य गुरुदेव गंगाशहर में चातुर्मास कर रहे थे। उस दौरान रूस की एक पत्रिका सोवियत भूमि हमारे हाथ में आयी। उसमें पढ़ा-सोवियत वैज्ञानिकों ने नशा छुड़ाने के लिए सत्तर आदमियों के कान पर बिजली के प्रकंपन का प्रयोग किया। उनमें से पचास आदमी तो नशे से मुक्त हो गए। शेष बीस-पचीस आदमियों की आदत अत्यन्त कम हो गई। हमें लगा-हम प्रेक्षाध्यान के मूलस्रोत : १५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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