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________________ चैतन्यकेन्द्रों की चर्चा है। नन्दीसूत्र ज्ञानमीमांसा का आगम है। एक ज्ञान है अवधिज्ञान। यह अतीन्द्रिय चेतना को जागृत करने वाला पहला ज्ञान है। इसके अनेक प्रकार बतलाए गए हैं। •पुरओ-आगे का अवधिज्ञान। •पिट्ठओ-पीछे का अवधिज्ञान। पासओ-दोनों पार्श्व का अवधिज्ञान। .मज्झओ-ऊपर का अवधिज्ञान। कितने हैं चैतन्य केन्द्र चूर्णिकार ने बहुत स्पष्ट किया है-जैसे एक दीप का प्रकाश उस पर ढक्कन देने से अवरुद्ध हो जाता है। उसे जालीदार बना देने पर प्रकाश की रश्मियां उसमें से बाहर निकलने लगेंगी। हमारी चेतना पर भी एक आवरण पड़ा हुआ है ज्ञानावरण कर्म का। साधना के द्वारा आवरण को भेद कर जालीदार बना लें तो फिर उसमें से अतीन्द्रिय ज्ञान की रश्मियां बाहर निकलेंगी, चारों तरफ से निकलेंगी। एक स्पष्ट संकेत मिला-चैतन्यकेन्द्र तेरह ही नहीं, तेरह सौ भी हो सकते हैं, तेरह हजार भी हो सकते हैं। हमारा यह शरीर चैतन्यकेन्द्रों से भरा हुआ है। जहां से भी भेदो, वहीं से प्रकाश निकलना शुरू हो जाएगा। आज स्नायुतंत्र के विशेषज्ञ बतलाते हैं-आंख से हमने देखना शुरू किया, इसका तात्पर्य है-इस स्थान का हमने क्रिस्टेलाइजेशन कर दिया। अगर यह क्रिस्टेलाइजेशन अंगुली का कर दें तो अंगुली से देखने लग जाएंगे। एक लब्धि है-संभिन्नस्रोतोलब्धि । उसका अर्थ ही यही है-शरीर के हर किसी भाग से देख सकते हैं, सुन सकते हैं, चख सकते हैं। सब इन्द्रियों का काम किसी एक अंगुली से कर सकते हैं, पैर के अंगूठे से कर सकते हैं, जहां से चाहें, वहां से कर सकते हैं, यदि उसका क्रिस्टेलाइजेशन हो जाए। चैतन्यकेन्द्र प्रेक्षा का अर्थ है-शरीर के किसी भी भाग को हम सक्रिय कर सकते हैं, इलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड बना सकते हैं, उसमें से झांक सकते हैं। संदर्भ धवला का दिगम्बर साहित्य में बहुत विस्तार से 'करण' के नाम से इसकी चर्चा की गई १५८ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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