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________________ स्वरूप बदल गया भगवान् महावीर के निर्वाण के हजार वर्ष बाद ऐसा लगता है कि एक मोड़ आया और जैन धर्म में ध्यान-साधना कुछ कमजोर पड़ी। वीर-निर्वाण के पन्द्रह सौ वर्षों के बाद ध्यान का स्वरूप बदल गया। जो मूल ध्यान साधना की पद्धति थी, जैनधर्म की प्राचीन पद्धति थी, वह छूट गई और हठयोग, तंत्र आदि से प्रभावित ध्यान की पद्धति चली। आचार्य हरिभद्र, हेमचन्द्र, शुभचन्द्र, पूज्यपाद आदि-आदि ने ध्यान की साधना को फिर आगे बढ़ाया। किन्तु उसका स्वरूप बदल गया। इन पांच-सात सौ वर्षों में ध्यान की साधना अत्यन्त क्षीण हो गई। जैसे बहते-बहते नदी का प्रवाह क्षीण हो जाता है, वैसे ही जैनधर्म में ध्यान की सरिता का प्रवाह क्षीण हो गया। स्थिति यह बन गई-जैन लोग यह भी भूल गए कि हमारे यहां भी ध्यान की कोई पद्धति कमिश्नर का प्रश्न दिल्ली की घटना है। हम लोग अणुव्रत भवन से प्रेक्षा-ध्यान-शिविर के लिए अध्यात्म-साधना केन्द्र आ रहे थे। रास्ते में एक भाई मिला। वह रिटायर्ड इन्कमटैक्स कमिश्नर था। वंदना की, पूछा--आप कहां जा रहे हैं ? हमने बताया-अध्यात्म साधना केन्द्र जा रहे हैं। ध्यान का शिविर है। तत्काल उसने कहा-क्या जैनों में भी कोई ध्यान की विधि है ? हमें यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। इतना पढ़ा-लिखा आदमी, इन्कमटैक्स का ऑफीसर और वह भी जैन, यह पूछता है कि क्या जैनों में भी कोई ध्यान की विधि है ? इन शताब्दियों में वातावरण ही कुछ ऐसा बन गया था कि ऊपर की बातें, क्रियाकाण्ड ज्यादा प्रभावी बन गए और ध्यान छूट गया। प्रेक्षाध्यान का अभ्युदय आगम संपादन का कार्य चल रहा था। हम उत्तराध्ययन का संपादन कर रहे थे। उत्तराध्ययन के तीसवें अध्याय में ध्यान का एक लम्बा प्रकरण जोड़ा गया। उस सन्दर्भ में मैंने अनेक जैन ग्रन्थों का पारायण किया। कई ग्रन्थ देखे। श्वेताम्वर और दिगम्बर-दोनों सम्प्रदायों के ध्यान संबंधित ग्रन्थों का प्रेक्षाध्यान के मूलस्रोत : १५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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