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पार्श्व भरत :
प्रेक्षा का मूल स्रोत है आदिनाथ ऋषभ। एक घटना है - भरत ने स्नान किया । स्नान कर भवन में बैठे। वह आदर्श भवन था । पूरा शीशे का बना हुआ भवन था । आसन पर बैठ गए। सामने दर्पण था । उसमें वे अपने आपको देख रहे हैं, अपनी प्रेक्षा कर रहे हैं । प्रेक्षा करते-करते, अपने आपको देखते-देखते वे सम्राट् से केवली बन गए । यह ध्यान की परंपरा का आदि स्रोत है ।
भगवान् पार्श्व की ध्यान साधना विशिष्ट थी । पार्श्व की ध्यान साधना का प्रभाव बहुत व्यापक बना । पार्श्व की साधना से नाथ सम्प्रदाय प्रभावित है, बौद्ध धर्म और जैन धर्म प्रभावित है । पार्श्व का इतना व्यापक प्रभाव है कि उनकी ध्यान साधना से कितने ही सम्प्रदाय प्रभावित हुए हैं। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने नाथ सम्प्रदाय की शोध में इन तथ्यों का बहुत विस्तार से वर्णन किया है ।
महावीर की साधना
पार्श्व के पश्चात् महावीर ने ध्यान की उत्कृष्ट साधना की । सोलह-सोलह दिन और रात वे एक ध्यान की मुद्रा में, कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़े रहे। वे कभी 'ऊर्ध्वलोक को देखते, कभी अधोलोक को देखते और कभी मध्यलोक को देखते । जब ऊर्ध्वलोक के तत्त्वों को जानना होता तो ऊर्ध्वलोक की प्रेक्षा करते । जब मध्यलोक के तत्त्वों को जानना होता तो मध्यलोक के तत्त्वों की प्रेक्षा करते और जब नीचे के लोक के तत्त्वों को जानना होता, तब नीचे के लोक की प्रेक्षा करते। उनकी प्रेक्षा अनवरत चलती रही । महावीर के निर्वाण के पश्चात् ध्यान की साधना चलती रही और लम्बे समय तक यह क्रम चला । बीच में प्रश्न भी खड़े हुए। बौद्धों ने प्रश्न खड़ा किया - जैनों में ध्यान साधना कमजोर है । पुष्यमित्र का प्रसंग इस बारे में स्पष्ट है। बौद्ध भिक्षु आए। आचार्य ने कहा- तुम यहां हमारे पास रहो और देखो कि दुर्बलिका पुष्यमित्र कैसे ध्यान करता है ? ध्यान की प्रकृष्ट साधना उस समय चल
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रही थी ।
१५४ : नया मानव : विश्व
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