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प्रेक्षाध्यान के मूलस्रोत
शब्द शाश्वत नहीं होता, अर्थ शाश्वत होता है। शब्द बदलते रहते हैं, भाषा बदलती रहती है, किन्तु तात्पर्य कभी नहीं बदलता। जो है, वह रहता है। उसके लिए समय-समय पर नए-नए शब्दों का सृजन होता है और भाषा में परिवर्तन होता रहता है। योग के प्रवर्तक प्रश्न है-प्रेक्षा शब्द कितना पुराना है ? यह महावीर जितना पुराना तो है ही। उससे भी आगे यह शब्द रहा है या नहीं-नहीं कहा जा सकता। किन्तु इसका अर्थ बहुत पुराना है। अर्थ की दृष्टि से विचार करें तो हम ऋषभ तक पहुंच जाते हैं। भगवान् ऋषभ पहले पुरुष हुए हैं, जिन्होंने आत्मवाद का प्रवर्तन किया, योग साधना का मार्ग बतलाया। हठयोग विद्या में आदिनाथ को नमस्कार किया गया है, जिन्होंने योग का प्रवर्तन किया।
आदिनाथ नमोस्तु तस्मै, येनोपदिष्टा हठयोगविद्या।
आदिनाथ ऋषभ हैं। कुछ लोग कहते हैं-शिव हैं। शिव हैं तो आदिनाथ हैं और आदिनाथ हैं तो शिव हैं। आज मान लिया गया-आदिनाथ ऋषभ
और शिव-ये कोई दो व्यक्ति नहीं हैं। आदिनाथ ऋषभ योग के प्रवर्तक हैं। हिरण्यगर्भ हैं आदिनाथ, जिन्होंने योग का प्रवर्तन किया, ध्यान मार्ग का प्रवर्तन किया।
हिरण्यगर्भो योगस्य वेत्ता नान्यः पुरातनः।
प्रेक्षाध्यान के मूलस्रोत : १५३
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