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क्षमता है। एक-एक अवयव पर विचार किया गया और यह पाया गया कि सैकड़ों वर्ष से भी ज्यादा उनकी काम करने की क्षमता है। कम से कम सौ वर्ष के आसपास तो जिएं, लेकिन मर रहे हैं तीस-चालीस के बीच में ही। कारण एक ही है-जीविका को जीवन मान लिया, सिंहासन पर बिठा दिया और जीवन को उसके नीचे दबा दिया। चिन्तन के इस कोण को बदलने का एक दर्शन है-प्रेक्षाध्यान । केवल एक घण्टा आंख मूंद कर ध्यान करेंगे तो प्रेक्षाध्यान के प्रति न्याय नहीं होगा! प्रेक्षाध्यान का प्रयोजन और दर्शन है-जीवन को समग्रता से समझें, उसे समग्रता से समझकर जीवन के साथ उचित और न्यायसंगत व्यवहार करें, संतुलित व्यवहार करें। एक हाथ में जीविका रहे तो दूसरे हाथ में जीवन रहे। दोनों को बराबर रखें तो जीवन सुचारु रूप से चलेगा, काफी समस्याएं कम होंगी और व्यक्ति शान्ति के साथ जीवन जी सकेगा।
१५२ : नया मानव : नया विश्व
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