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के बारे में भी कुछ सोचते हो ? वे मेरे कथन का आशय समझ नहीं सके। मैंने पूछा-तुम किसलिए पढ़ रहे हो ? उन्होंने कहा-अच्छी पढ़ाई का उद्देश्य है अच्छी कमाई करना। एक लड़की का उद्देश्य होगा-अच्छी पढ़ाई और अच्छे लड़के के साथ विवाह । अब इतने में ही सारा जीवन सिमट गया। जीवन की कथा को इतने छोटे में समाप्त कर समस्याएं अपने आप पैदा कर ली गईं।
जीवन का उद्देश्य रामायण को एक वाक्य में समाप्त नहीं किया जा सकता। वाल्मिकी के एक लाख श्लोक पढ़ें, तब रामायण समझ में आती है। हमारे सामने आज कोई वाल्मिकी और व्यास नहीं है। कोई हेमचन्द्र और जिनसेन नहीं हैं, जिन्होंने विस्तार से पुराण लिखे। क्या जीवन की कथा भी विस्तार से लिखनी जरूरी नहीं है ? जीवन को इतना छोटा कर देने का एकमात्र कारण जीविका को प्रधान मान लेना है। जीवन को इतना गौण मान लिया, उस पर इतने परदे डाल दिए कि मूल तस्वीर दिखाई ही नहीं दे रही है। जीवन का एकमात्र उद्देश्य धन की कमाई रह गया है। उसी से सुविधा मिलती है, प्रतिष्ठा मिलती है, सुख का संवेदन मिलता है। यह मान कर जीवन की जो उपेक्षा की गई है, उसी का परिणाम है-समस्या का चक्र
और उलझता जा रहा है। चिन्तन का कोण बदलें प्रेक्षाध्यान एक दर्शन है जीवन का। उसका मुख्य संदेश है-जीविका के साथ जीवन को भी समझने का प्रयत्न करें। सामाजिक व्यक्ति के लिए जीविका की अनिवार्यता है। इसे गौण नहीं किया जा सकता किन्तु कम से कम जीवन का मूल्यांकन तो करें। जीविका आखिर है किसके लिए ? क्या वह जीवन के लिए नहीं है ? उसे गौण करने का परिणाम क्या होगा ? आज का युवक बहुत जल्दी परलोकगामी होता है। इन वर्षों में तीस और चालीस वर्ष के अनेक युवक हृदयरोग से चले गए। इतना जल्दी हृदय बन्द नहीं होना चाहिए। शरीरशास्त्र का मत है-हमारे हार्ट में सौ से ज्यादा वर्ष तक काम करने की
जीवन-दर्शन : १५१
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