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पॉवर कम हो गया, इम्युनिटी कम हो गई, तो फिर न डॉक्टर जिला सकता है, न दवा जिला सकती है।
जीवन का मुख्य आधार प्राणशक्ति हमारे जीवन का मुख्य आधार है। संस्कृत में जीवन का अर्थ ही है प्राण। इसे समझना प्रेक्षाध्यान का मुख्य विषय है। प्राण दस बतलाए गए हैं। शरीर तो है किन्तु उसके संचालन की शक्ति का नाम है प्राण । इन्द्रिय
और इन्द्रिय प्राण। पांच इन्द्रियों की संचालक शक्ति है प्राण । मन और मनोबल प्राण। इसी प्रकार है श्वास और श्वास का प्राण। हम श्वास लेते हैं, वह श्वास है और जो श्वास लेने वाली शक्ति है, वह है श्वास प्राण। प्रेक्षाध्यान में एक प्रयोग कराया जाता है-श्वास लें और अनुभव करें-श्वास जा रहा है, वह प्राण के द्वारा जा रहा है। श्वास और प्राण को अलग-अलग देखने का अभ्यास करें। जब हम प्राण और श्वास को अलग समझने का प्रयत्न करते हैं तब मन की सूक्ष्मता और एकाग्रता बहुत बढ़ जाती है। ऐसा लगता है- जैसे एक वैज्ञानिक इतने बड़े अनुसंधान में लग गया है, वह सारी बाहरी बातें भूल गया है। बाहर की विस्मृति आइंस्टीन ने किसी को खाने पर निमंत्रित किया। वह व्यक्ति भोजन के समय पहुंच गया। आईंस्टीन अपनी रिसर्च में डूबा हुआ था। उसे ध्यान ही नहीं रहा कि किसी को बुलाया है। अतिथि ने देखा-आईंस्टीन अपने उपकरणों में डूबा हुआ है। वह उसकी ओर देख ही नहीं रहा है। भोजन किया और बिना कुछ कहे चला गया। आईंस्टीन प्रयोग से निवृत्त हुए। उन्होंने देखा-जूठा बर्तन खाली पड़ा है। अच्छा ! मैं भूल गया। मैंने भोजन कर लिया। पुनः अपनी प्रयोगशाला में लौट गए।
प्रश्न हो सकता है-इतना बड़ा वैज्ञानिक इस तरह का पागलों जैसा व्यवहार कैसे करता है ? किन्तु जब हम प्राणशक्ति के सूक्ष्म अनुसंधान में लग जाते हैं, तब हमारी सारी स्मृतियां स्वगत हो जाती हैं, बाहर की स्मृति शेष नहीं रहती।
जीवन-दर्शन : १४६
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