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________________ कोई शरीर की बीमारी नहीं है, जर्म्स और वायरस की बीमारी नहीं है, विजातीय तत्त्व की बीमारी नहीं है, किन्तु तुम्हारा प्राण असंतुलित है । चेतन यंत्र के अधीन है इस बात को न डॉक्टर पकड़ पाते हैं और न उनके यंत्र पकड़ पाते हैं । हमने अनेक बार प्राण के प्रयोग कराए, प्राण को समझने का प्रयत्न किया। डॉक्टर यंत्र के बहुत अधीन हैं । वे सबसे पहले यह देखते हैं- रिपोर्ट क्या है । जो यंत्र बताता है, वही चेतन बताता है तो फिर फर्क क्या पड़ा ? चेतन यंत्र के अधीन हो गया । होना तो यह चाहिए-यंत्र चेतन के अधीन रहे । आज ऐसा न होकर उल्टा हो गया । प्राण संतुलित होता है तो काफी समस्याएं सुलझ जाती हैं । तुलसी अध्यात्म नीडम्, लाडनूं में प्रेक्षा ध्यान का शिविर चल रहा था । जेठाभाई झवेरी शिविर में आए। उनकी कमर में पट्टा बंधा था। मैंने कहा- यह क्या हुआ ? जेठाभाई ने कहा- स्पोन्डेलाइटिस की बीमारी हो गई । अब न तो सीधा बैठ सकता हूं और न सीधा सो सकता हूं। हमने शिविरार्थियों को प्राण का प्रयोग कराया । जेठाभाई ने उसे पकड़ लिया । यह प्रयोग कई बार किया। दूसरे दिन सूर्योदय के समय सूर्य के सामने बैठ कर पुनः प्रयोग किया। तीसरे दिन उनका पट्टा खुल गया। सीधे बैठने लगे और लेटने भी लगे । ईश्वर तब हंसता है ईश्वर कब हंसता है, इसके कई कारण बतलाए गए हैं । उनमें एक कारण यह है - रोगी मर रहा है और डॉक्टर कहता है - मैं जिला दूंगा, तब ईश्वर हंसता है । क्या डॉक्टर किसी को जिलाता है ? अगर दवा किसी को जिलाती है तो आज आबादी इतनी बढ़ जाती कि पांच अरब के स्थान पर पचीस अरब होती । कोई मरता ही नहीं। डॉक्टर सबको जिला देते । जिलाने वाली हमारी प्राणशक्ति | जब तक प्राणशक्ति है, तब तक कोशिका की प्रजनन शक्ति बनी रहेगी। जब तक कोशिका की प्रजनन शक्ति बनी रहेगी, तब तक जीवन रहेगा । कोशिका की प्रजनन शक्ति समाप्त हुई, हमारा रेजिस्टेंस १४८ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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