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________________ है-अष्टलक्षार्थी । उन्होंने लिखा-मेरे जैसा अल्पज्ञ व्यक्ति आठ अक्षरों के आठ लाख अर्थ कर सकता है तो बहुज्ञानी, विशिष्टज्ञानी और बहुश्रुत न जाने कितने अर्थ कर सकते हैं। ___ इतना बड़ा है हमारा पर्याय का जगत् और सूक्ष्म जगत्, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। मन के पर्याय भी अनंत हैं। अध्ययन करने वाला कितने पर्यायों का अध्ययन करेगा और कितना जानेगा, नई-नई अवस्थाएं आती ही चली जाएंगी। विचार प्रेक्षा प्रेक्षाध्यान इसीलिए जीवन का दर्शन है कि उसमें मन को समझने का बहुत प्रयास किया गया है, केवल सैद्धान्तिक रूप में ही नहीं, प्रायोगिक रूप में भी। केवल सिद्धान्त के आधार पर मन को समझें तो, शायद पूरी बात पकड़ में नहीं आएगी। अभ्यास के स्तर पर मन को समझने का प्रयत्न करें। एक संकल्प लिया और मन को ही ध्येय वस्तु बना लिया। जैसे हम ध्यान के लिए श्वास को ध्येय वस्तु बनाते हैं, श्वास हमारे ध्यान का विषय बन जाता है। हम मन को ध्येय वस्तु बना लें। प्रेक्षाध्यान में इसे कहते हैं विचार प्रेक्षा । मस्तिष्क पर ध्यान केन्द्रित करें और जो विचार आएं, उन विचारों को देखना शुरू कर दें। न तो विचारों को रोकें और न अपनी ओर से उन्हें प्रेरित करें। केवल ध्यान को मस्तिष्क पर टिका दें। जो भी विचार आए, अच्छा आए या बुरा आए, उसे केवल देखें, द्रष्टा बन जाएं। यह विचार प्रेक्षा शायद मन को समझने का सबसे शक्तिशाली माध्यम है। शरीर प्रेक्षा शरीर प्रेक्षा का अर्थ है-शरीर को देखना और शरीर में होने वाले प्रकम्पनों को देखना। प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में एक प्रयोग और विकसित किया है-सप्तधातुप्रेक्षा। सबसे पहले हम रसधातु पर ध्यान केन्द्रित करें। फिर रक्तधातु-रक्त पर ध्यान केन्द्रित करें, रक्त संचार को देखें और उसे समझने का प्रयत्न करें। तीसरा है अस्थिधातु। हड्डियों पर ध्यान १४६ : नया मानव : नया निना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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