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________________ एक प्रयोग है-खुली आंख से एकटक. देखें। हठयोग में इसे त्राटक कहा जाता है। प्रेक्षाध्यान में इस प्रयोग का नाम है-अनिमेषप्रेक्षा । भगवान् महावीर इसका बहुत प्रयोग करते थे। अतीन्द्रिय चेतना को जगाने का शक्तिशाली साधन है-खुली आंख से अपनी ध्येय वस्तु को देखना। आंख खुली रखें और नाक या प्राणकेन्द्र पर उसे टिका दें। यदि पांच मिनट भी ऐसा कर सकें तो फिर कभी यह प्रश्न नहीं होगा कि मन बहुत चंचल है। न्यस्तनासाग्रदृष्टि-दृष्टि को नासाग्र पर न्यस्त करें। यह हमारे शरीर का प्राणकेन्द्र है। प्राणकेन्द्र पर ही ध्यान टिक जाएगा तो फिर मन की चंचलता कहां रहेगी ? खुली आंख के ध्यान को योग की भाषा में सांभवी मुद्रा कहा जाता है। यह शिव की मुद्रा है। शिव इस मुद्रा में बहुत ध्यान करते थे। महावीर की ध्यान मुद्रा भी खुली आंख से नासाग्र देखने की मुद्रा थी। शिवजी की मुद्रा थी खुली आंख से भृकुटी को देखने की। मन को समझें मनोविज्ञान में मन को समझने का बहुत प्रयत्न किया गया है। फ्रायड से लेकर आज तक सैकड़ों मनोवैज्ञानिकों ने इस पर प्रकाश डाला है, नए-नए अनुसंधान और नई-नई खोजें की हैं। फिर भी मन का विषय इतना बड़ा है कि हजारों प्रयत्नों के बाद भी उसे पूरा नहीं समझा जा सकता। जैन साहित्य में एक शब्द आता है पर्याय, अवस्था । वर्णमाला का पहला अक्षर है 'अ'। एक 'अ' को समझने के लिए बहुत समय चाहिए। क्योंकि अक्षर तो एक है किन्तु उसके पर्याय अनन्त हैं। अब इन अनन्त पर्यायों को आदमी एक जीवन में कैसे पूरा समझ पाएगा। संभव ही नहीं है। एक आचार्य के मन में विकल्प उठा-एक अक्षर के अनन्त पर्याय कैसे हो सकते हैं ? यह समझाना चाहिए। समझाने के लिए उन्होंने एक स्थूल उदाहरण लिया। संस्कृत के अनुष्टुप् छंद का एक चरण है-राजा नो ददते सौख्यम् । उसके आठ अक्षर हैं। अर्थ केवल इतना है-राजा सुख देते हैं। इस एक चरण के जब उन्होंने अर्थ करने शुरू किए तो इन आठ अक्षरों के आठ लाख अर्थ निकले। इस एक चरण पर एक ग्रन्थ ही बन गया, जिसका नाम जीवन-दर्शन : १४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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