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इन्द्रियां प्रसन्न रहें हम जीवन को सर्वांग दृष्टि से देखते भी नहीं हैं और उस पर विचार भी नहीं करते। हमारा ध्यान सबसे ज्यादा अटका हुआ है शरीर पर। यद्यपि उसे भी ठीक रखना नहीं जानते, फिर भी ऊपर से खूब सजा हुआ रखते हैं। थोड़ा-बहुत स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते हैं। स्वस्थ रहें, यह कल्पना और चिन्ता रहती है। इससे आगे बढ़ें। इन्द्रियों के प्रति हमारी चिन्ता बहुत कम है। इन्द्रियां स्वस्थ कैसे रहें, इस दिशा में प्रयत्न नहीं करते। शरीर कभी स्वस्थ नहीं रह सकता, यदि इन्द्रियां स्वस्थ नहीं हैं। क्या कभी कान पर विशेष ध्यान दिया ? आंख, नाक और जीभ पर ध्यान दिया ? यदि रसनेन्द्रिय-जीभ प्रसन्न नहीं है, स्वच्छ नहीं है तो जीवन एक समस्या के साथ जुड़ जाएगा। बहुत गहरा संबंध है इसका जीवन के साथ। तंत्रशास्त्र में हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियों और पांच कर्मेन्द्रियों पर बहुत गहरा विचार किया गया। ये दोनों स्वस्थ नहीं हैं तो जीवन प्रसन्न नहीं रह सकता। जीभ का संबंध हमारी जननेन्द्रिय के साथ भी है। यदि जीभ को प्रसन्न और निर्मल रखने का प्रयत्न नहीं किया, जीभ की चंचलता को कम करने का प्रयत्न नहीं किया तो काम केन्द्र अधिक उत्तेजित रहेगा और वह जीवन में बाधा डालता रहेगा। जीभ का मूल्य जीभ का बहुत मूल्य है। बोलने के साथ जीभ का जो संबंध है, वह दूसरे नम्बर पर है। बोलना जीभ का कोई मुख्य काम नहीं है। मुख्य काम है आस्वाद, रसन और उसके प्रभाव को अनुभव कराना। स्वाद का शरीर पर बहुत प्रभाव होता है। हमने इस दृष्टि से जीभ पर अपना अनुशासन स्थापित करने का प्रयत्न नहीं किया। यदि ध्यान करने वाला व्यक्ति इस सचाई को नहीं जानता है-जीभ की चंचलता को कम किए बिना मन की चंचलता को कम नहीं किया जा सकता तो उसका प्रयत्न बहुत सफल नहीं होगा। अनेक बार अभ्यास करने पर भी मन की चंचलता कम नहीं होगी। यह एक बहुत बड़ा रहस्य है।
जीवन-दर्शन : १४३
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