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जीवन-दर्शन
जीवन के बारे में हमारी धारणा स्पष्ट नहीं है। कुछ लोग जीवन के बारे में सोचते अवश्य हैं, किन्तु अधिकांश लोग जीवन के बारे में नहीं सोचते। शरीर के बारे में जानते हैं, थोड़ा-बहुत मन के बारे में जानते हैं, ज्यादा जीविका के बारे में जानते हैं। जीवन की आवश्यकताएं इतनी प्रखर बन गई हैं कि उनमें ही सारा समय का चक्र घूम जाता है, सारी परिक्रमा केवल उसी की परिधि में होती है। जीवन की आवश्यकताएं उपाध्याय यशोविजयी ने जीवन की आवश्यकताओं का मार्मिक चित्रण किया
प्रथममशनपानप्राप्तिवांछाविहस्ता, स्तदनुवसनवेश्मालंकृतिव्यग्रचिन्ताः। परिणयनमपत्यावाप्तिमिष्टेन्द्रियार्थान्,
सततमभिलषन्तः स्वस्थतां क्वाश्नुवीरन् ? पहली समस्या है-मनुष्य भोजन-पानी को उपलब्ध करने की इच्छा से व्याकुल है। दूसरी समस्या है, वस्त्र, मकान और अलंकार की प्राप्ति के लिए उसका चित्त व्यग्र बना हुआ है। तीसरी समस्या है-विवाह, संतान-प्राप्ति, मनोज्ञ इन्द्रिय विषयों को पाने की निरंतर अभिलाषा बनी हुई है। जीवन की समस्याओं में उलझा वह स्वास्थ्य को कहां उपलब्ध होता है ?
१४२ : नया मानव : नया विश्व
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