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कौशल माना जाता है। गीता के शब्दों में उसी को योग या कार्य-कौशल कहा जा सकता है। इसी सचाई को ध्यान में रखकर हम अपनी दक्षता या एफिशिएंसी को बढ़ाने का प्रयत्न करें तो बहुत भला होगा। केवल कार्य-कौशल शब्द के आधार पर हम शोषण, बाधाकारी कौशल की दिशा में आगे बढ़े तो वह मानव जाति के लिए कल्याणकारी नहीं होगा। हमारा सारा प्रयत्न और पुरुषार्थ इस दिशा में चले कि हमारा अपना कार्य किसी दूसरे के कार्य में बाधा न पहुंचाए। कार्य-कौशल का हृदय यही है।
कार्य-कौशल : १४१
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