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________________ लगता है, व्यवधान में ज्यादा जाता है। व्यक्ति ने कोई चिन्तन शुरू किया, लेखा करने बैठा, और बीच में ही कोई ऐसा विकल्प आया कि काम अटक गया। व्यक्ति आधा घण्टा उसी विकल्प में उलझ गया, आधी शक्ति उस विकल्प में खर्च हो गई। आप अनुभव करेंगे कि जब कभी माला फेरने बैठते हैं, ध्यान करने बैठते हैं तो मंत्र के एक-दो उच्चारण के बाद ही कोई ऐसा विकल्प आ जाता है कि मन उसी में उलझ जाता है, ध्यान-सामायिक. मन से उतर जाते हैं, मन चक्कर काटता ही रह जाता है। घटना राजर्षि की व्याख्या साहित्य की एक कथा है। एक मुनि थे प्रसन्नचन्द राजर्षि । वे कायोत्सर्ग की मुद्रा में एक पेड़ के नीचे खड़े थे। राजा श्रेणिक जा रहे थे। उनके आगे-आगे एक आदमी चल रहा था। उसका नाम था दुर्मुख और प्रकृति का भी वह वैसा ही था। मुनि को देखते ही बोला-साधु बन गया। अब यहां ढोंग और पाखण्ड किए खड़ा है। इसे पता नहीं, इसके पुत्र के राज्य पर शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया है, वह बेचारा हारता चला जा रहा है और यह यहां ध्यान लगाए बैठा है। यह बात सुनते ही राजर्षि प्रसन्नचन्द्र इस शब्द पर अटक गये- युद्ध में पुत्र पराजित हो रहा है। ध्यान तो छूट गया और युद्ध करना शुरू कर दिया। घण्टों तक युद्ध चलता रहा। न समरांगण, न सामने शत्रु, न शत्रु की सेना, पर अन्तर्गजगत् में ऐसा युद्ध छिड़ा कि सारा जीवन युद्ध के साथ जुड़ गया। श्रेणिक महावीर के पास पहुंचा। वंदना कर बोला-भन्ते ! मुनि प्रसन्नचन्द्र कायोत्सर्ग की मुद्रा में ध्यान की गहराई में हैं। इस समय यदि वे मर जाएं तो कहां जाएंगे। महावीर ने कहा-नरक में। श्रेणिक को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह भगवान् की बात को झूठ माने तो कैसे माने और सच माने तो कैसे माने ? दोनों ओर समस्या। अंतिम छोर पर चल रहा आदमी आया, सुमुख नाम था उसका। राजर्षि को वंदना कर बोला-धन्य हैं महाराज ! राजपाट को छोड़कर मुनि बन गए और अब ध्यान में इतनी गहराई में डूबे हुए हैं। मुनि शब्द कान में पड़ा, तब ध्यान आया-अरे, मैं तो मुनि बन गया हूं। किसका राज्य, किसका लड़का, कौन-सा युद्ध ? वे संभले, मुनित्व पर एकाग्र बने और सारी स्थिति बदल कार्य-कौशल : १३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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