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नष्ट हो जाता है, कार्य में असफल हो जाता है। काल पहले ही उसका रस पी जाता है।
दूध कहां गया ? . गाय की दूध देने की क्षमता कम हो गई। पांच किलो देने वाली एक किलो देने लगी। मालिक ने सोचा-घर में एक महीने बाद विवाह का प्रसंग है। उसके मन में विकल्प आया-विवाह में पचास किलो दूध की जरूरत होगी
और गाय दे रही है मात्र एक किलोग्राम । मैं क्यों न इसे दुहना बन्द कर दूं। विवाह के दिन एक साथ पचास किलो दूध निकाल लूंगा। चिन्तन की क्रियान्विति की, दुहना बन्द कर दिया। वह विवाह के दिन गाय को दुहने बैठा तो पात्र में एक बूंद भी दूध न गिरा । वह उलझन और चिन्तन में पड़ गया कि दूध आखिर कहां गया ? उसे काल पी गया।
जो काम जिस समय करना चाहिए, उस समय न करके लम्बे अन्तराल के बाद किया जाए तो असफलता ही हाथ लगेगी। कार्यकौशल का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-चिन्तन, निर्णय और क्रियान्विति में लम्बा अन्तराल न हो।
__ कार्यकौशल का दूसरा सूत्र है-हड़बड़ी में कोई काम न करें। सहसा विदधीत क्रियाम्-सहसा कोई काम न करें, चिन्तन और विवेक पूर्वक करें। एकाग्रता का विकास हम प्रेक्षाध्यान के सन्दर्भ में विचार करें। कार्यकौशल पहला सूत्र होगाएकाग्रता का विकास। ध्यान का अर्थ ही है एकाग्रता का विकास। दूसरा सूत्र है-विचारशून्य हो जाना, मन से परे चले जाना। पहला सूत्र कार्य-कौशल के लिए बहुत सफल बनता है। दूसरा सूत्र कार्य-कौशल को बढ़ाता तो है, लेकिन यह बहुत आगे की बात है। हम पहले एक बिन्दु पर टिकना जानें। एक विचार, एक विकल्प, एक कार्य लें और उसी में तन्मय बन जाएं। जो काम करें, उसी में पूरी तरह चित्त को लगा दें। चित्त अलग और कार्य अलग, यह दूरी न रहे। मन को भी उसी में लगाए। हमारी भावात्मक दूरी भी न रहे । व्यक्ति कार्य करने बैठा। यदि भाव क्रोध या अहंकार का है तो कार्य प्रभावित होगा। कार्य करें तो अध्यवसान
१३६ : नया मानव : नया विश्व
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