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उपशम - मन की शान्ति मृदुता या विनम्र व्यवहार मृदुता या निश्छल व्यवहार संतोष
भावात्मक स्वास्थ्य की ये चार कसौटियां हैं। हम तुलना करें - कार्यकौशल में कौन घट रहा है ? कौन बढ़ रहा है ? कार्यकौशल मन की अशान्ति तो पैदा नहीं कर रहा है, विनम्र व्यवहार में बाधा तो नहीं डाल रहा है ? आदमी को अहंकारी और उत्तेजित तो नहीं बना रहा है ? हमारी सरलता को भंग नहीं कर रहा है ? लोभ को इतना तो नहीं बढ़ा रहा है कि सारे संसार को अपने में ही समेटने की आकांक्षा जग जाए ? अगर ऐसा होता है तो फिर कार्य की दक्षता को अदक्षता ही कहा जाएगा ।
कार्य-क्षमता का प्रयोजन क्या है ? आखिर सब कुछ किसलिए है ? मनुष्य की सुख-सुविधा के लिए सब कुछ हो रहा है और मनुष्य स्वयं टूटता जा रहा है । हमारी प्रवृत्ति का कोई अर्थ नहीं रहा । कार्यकौशल की पहली परिभाषा यह होगी - जो जीवन के किसी अन्य पक्ष को प्रभावित न करे, बाधित न करे, पीड़ित न करे, वह कार्यकौशल है ।
चिन्तन, निर्णय और क्रियान्विति
हम कार्य - कौशल के साधनों पर विचार करें। इसके लिए कार्य की एक रणनीति बनानी होगी। कोई भी कार्य हो, उसे योजनापूर्वक करें । कार्यकौशल के लिए लेनिन का एक प्रसिद्ध सूत्र है - निर्णय, चिन्तन और क्रियान्विति में दूरी न हो। उनमें सामंजस्य रहे । चिंतन आज किया, निर्णय एक वर्ष के बाद और क्रियान्विति पांच वर्ष के बाद, यह बात नहीं होनी चाहिए। संस्कृत साहित्य में इसे दीर्घसूत्रता कहा गया है । संस्कृत की एक कथा है - कुछ विद्वानों को भोजन के लिए आमंत्रित किया गया । भोजन में परोसी गईं सिवइयां । एक विद्वान् ने लम्बी सिवइयों को देखकर सोचा - दीर्घसूत्री विनश्यति । जो दीर्घसूत्री होता है, वह नष्ट हो जाता है । यह तो दीर्घसूत्री है, इसे नहीं खाना चाहिए । इसका तात्पर्य है - जिसका चिंतन लम्बा होता है और अंतहीन चलता है, वह बिलकुल
कार्य-कौशल : १३५
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