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कार्यकौशल और कार्यक्षमता नहीं कहा जा सकता। एक राष्ट्र के सन्दर्भ में कहा जाता है-वहां कार्यकौशल बहुत बढ़ा है और विश्व बाजार पर उसका प्रभुत्व स्थापित हो गया है। यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है किन्तु इसका दूसरा पहलू भी देखें। वह यह है कि वहां आत्महत्या सबसे ज्यादा बढ़ी है। तलाक ज्यादा बढ़े हैं। अनिद्रा वहां का प्रमुख रोग बन रहा है और जल्दी मरने की दर भी बढ़ी है। हम उनका कार्यकौशल क्या माने ? एक संतुलन होना चाहिए। कार्य में दक्षता बढ़े तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी उसी अनुपात में बढ़े।
विकास की अवधारणा आज विकास और कार्यकौशल की अवधारणा मात्र पदार्थ एवं पदार्थ-निर्माण पर अटक गई है। चेतना के सारे आयामों को गौण कर दिया गया है। चेतना का उसके सामने कुछ भी मूल्य नहीं रहा। आदमी कितना ही बिगड़ता चला जाए, कोई चिन्ता नहीं। पदार्थ का विकास अधिकाधिक होना चाहिए। मल्टीस्टोरीज बिल्डिंग बनें, बढ़िया कारें बनें, शीघ्र गति वाले वायुयान बनें, अंतरिक्षयान बनें, समुद्र और अन्तरिक्ष में नगर बसाने की कल्पना आगे बढ़े। हर दिशा में विकास और कार्यकौशल बढ़ रहा है, लेकिन आदमी अच्छा बने, इसका प्रयास बिल्कुल नहीं हो रहा है। आदमी अपने आप में इतना पीड़ित
और अशान्त है कि उसकी कोई कल्पना नहीं की जा सकती। उसके लिए कोई चिन्ता भी नहीं है। थोड़ी-बहुत है भी तो उसके लिए उपचार के रूप में गोली-टिकिया ईजाद करने के प्रयत्न हो रहे हैं, चेतना को और ज्यादा निकम्मा बनाया जा रहा है। इस स्थिति में कार्य-कौशल को समझना बड़ा कठिन है।
कसौटी भावात्मक स्वास्थ्य की भावात्मक स्वास्थ्य के अभाव में कार्यकौशल की संभावना नहीं की जा सकती। भावात्मक स्वास्थ्य का कोई पैरामीटर या पैमाना नहीं है, किन्तु व्यक्ति के व्यवहार से हम उसे परख सकते हैं। व्यवहार के आधार पर भावात्मक स्वास्थ्य की चार कसौटियां निर्धारित की जा सकती हैं।
१३४ : नया मानव : नया विश्व
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