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जरूरी है पुरुषार्थ और मार्गदर्शन शान्तिकेन्द्र पर सफेद रंग का ध्यान, मानसिक प्रतिमा की स्थापना, पवित्र शुक्ल लेश्या की स्थापना, भावधारा के परिष्कार में बहुत सहायक हैं। एक चैतन्य केन्द्र है, ज्ञानकेन्द्र। हठयोग की भाषा में उसे सहस्रारचक्र कहा गया है। वहां से हजारों किरणें फूटती हैं। प्रेक्षाध्यान में इन केन्द्रों को बहुत महत्त्व दिया गया है। हम इनका मूल्यांकन करें, अभ्यास करें तो जो दो धाराओं का आन्तरिक संघर्ष चल रहा है, उसमें हम विजयी बन सकते हैं। जरूरत है केवल पुरुषार्थ की, कर्तृत्व की, गुरु के मार्गदर्शन की। जिसका पुरुषार्थ प्रबल है और मार्गदर्शक उपलब्ध है, उसके भाव सदा स्वस्थ एवं पवित्र रह सकते हैं।
भावात्मक स्वास्थ्य : १३१
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