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और क्षायोपशमिक भावधारा या निर्मल भावधारा का स्रोत बहा सकें। दो ग्रंथियां ललाट और उसके मध्य का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसके आसपास दो ग्रन्थियां काम करती हैं-पीनियल और पिट्यूटरी। पिट्यूटरी ग्लैण्ड पर मेडिकल साइंस में काफी प्रकाश डाला गया है किन्तु लगता है कि अभी वह अधूरा है। शारीरिक दृष्टि से उस पर काफी विचार हुआ है, किन्तु पिट्यूटरी का जो आध्यात्मिक महत्त्व है, उस पर अभी बहुत कम काम हुआ है। पीनियल ग्लैण्ड पर तो बहुत ही कम कार्य हुआ है। यह हमारा अर्न्तदृष्टि (इन्ट्यूशन पावर) का स्थान है। जब अन्तर्दृष्टि जाग जाती है, भावजगत् के संघर्ष में हम विजयी बन जाते हैं। दृष्टि : अंतर्दृष्टि महाप्रभु ईशु के पास एक अंधा व्यक्ति आया। ईशु शक्तिशाली पुरुष थे। उनकी प्राणशक्ति बहुत जागृत थी। दया आ गई। उसे दृष्टि दे दी, अन्धे को चक्षुष्मान् बना दिया। एक दिन ईशु जा रहे थे। उनके आगे एक युवक एक वेश्या के पीछे दौड़ता हुआ जा रहा था। यीशु ने देखा-यह तो वही युवक है, जिसे आंख दी थी। उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और कहा-तुम तो वही हो, जिसे मैंने दृष्टि दी थी। यह तुम क्या गंदा काम कर रहे हो ? दृष्टि पाकर भी अंधे बने हो। युवक बोला-महाप्रभु ! एक कमी रह गई। आपने मुझे दृष्टि तो दी पर अन्तर्दृष्टि नहीं दी। अगर दृष्टि के साथ अन्तर्दृष्टि भी दी होती तो मैं वेश्या के पीछे कभी नहीं भागता। लाइट और ब्रेक अन्तर्दृष्टि का स्थान है मस्तिष्क का अग्रभाग। इस पर प्रयोग करने से हमारी भावधारा संतुलित बनती है। बहुत आवश्यक है अन्तर्दृष्टि का विकास और अपने पर नियंत्रण।
कार आ रही थी। चौराहे पर पुलिस का सिपाही खड़ा था। संकेत किया-कार को रोको। कार में बैठा ड्राइवर बोला-क्यों ?सिपाही बोला-कार
भावात्मक स्वास्थ्य : १२६
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