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________________ तो खाना था। प्रसन्नता से ले लिया। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है-कोई व्यक्ति किसी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करे और सामने वाले पर उसका कुछ असर न पड़े तो उसे बड़ा कष्ट होता है, मानसिक वेदना होती है। उसने सोचा-सारा किया-कराया व्यर्थ चला गया। जिसके लिए किया, वह वापस नहीं मिला तो प्रतिशोध पूरा कहां हुआ ? उलझन हो गई। एक क्षण तक एकटक देखता रहा। कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। व्यक्ति से रहा नहीं गया, पूछा-आपको पापड़ कैसा मिला ? 'बड़ा अच्छा मिला। 'तुमने ध्यान नहीं दिया, पापड़ नहीं, पापड़ के टुकड़े मिले हैं।' 'कोई बात नहीं, तोड़कर ही तो खाने थे, हमें तो सुविधा ही हुई।' 'शायद तुम्हें याद नहीं, तुमने भी एक बार मुझे खंडित पापड़ दिया था, यह उसी का बदला है।' उस भद्र व्यक्ति ने कहा-'भाई ! इतनी सी बात के लिए तुमने इतना आयोजन कर डाला । यदि उसी समय कह देते तो मैं तत्काल तुम्हें पूरा पापड़ परोस देता। इष्ट का निर्धारण इतना विचित्र है हमारा भावजगत् । वस्तुतः हमें उस आत्मा को देखना है, जो पवित्रात्मा है, विशुद्धात्मा है। लेकिन यह बहुत आगे की बात है। वहां तक देखने के लिए बहुत बड़ी साधना करनी पड़ेगी। यदि एक वैज्ञानिक अपना संपूर्ण जीवन इसकी रिसर्च में लगा दे तो इतने रहस्यों का उद्घाटन होगा कि उससे दुनिया का कल्याण हो जाएगा। एक साधक अपना जीवन इस खोज-कार्य में लगा दे तो इतना कुछ पाएगा कि उसका स्वयं का तो कल्याण होगा ही, पूरे विश्व का भला होगा। मुश्किल यह है कि इसका दरवाजा बन्द पड़ा है, इसलिए हम वहां तक पहुंच नहीं पा रहे हैं । भाव जगत् को बदलने का, अखण्ड आनन्द, अविच्छिन्न सुख और शान्ति की धारा प्रवाहित करने का एक ही रास्ता है-इष्ट का निर्धारण, शान्ति केन्द्र पर ऐसे वीतराग या परम आनन्द की प्रतिमा को स्थापित कर लेना, जिससे यह मलिन भावधारा का, औदयिक भावधारा का जो स्रोत बह रहा है, उसे बंद कर सकें १२८ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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