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________________ इष्ट नहीं बन सकते। इष्ट तब बनते हैं, जब सिद्ध बन जाते हैं। जब तक देहधारी हैं, इष्ट नहीं हो सकते। कारण क्या है ? यही है कि इष्ट निर्विकल्प होता है। देहधारी कहेगा-ऐसा करो, ऐसा मत करो। मन में द्वन्द्व पैदा हो जाएगा। व्यक्ति सोचेगा-यह तो मेरे काम का नहीं है। बहुत सारे लोग इसीलिए गुरु को छोड़ कर चले जाते हैं, योग्य शिक्षक को छोड़कर चले जाते हैं कि यह मेरे काम का नहीं है, मुझे बार-बार रोकता है, टोकता है। इष्ट न रोकता है, न टोकता है, केवल आदर्श होता है। आस्था के केन्द्र आस्था के केन्द्र दो माने गए हैं-देव और गुरु। देव वह है, जो वीतराग बन गया, साक्षी बन गया। जो साक्षी है, द्रष्टा है, वह इष्ट हो सकता है, पथदर्शक दूसरा होगा। वीतराग पथदर्शक नहीं होते। इसके लिए वे अर्ह नहीं माने गए। अर्ह माना गया है गुरु को, जो पथदर्शन कर सकता है। वीतराग के पास शिष्य ने निवेदन किया-मैं ऐसा करना चाहता हूं तो वीतराग कहेंगेजहासुहं-जैसे तुम्हें सुख हो। महावीर के पास जमाली आया, बोला-मैं स्वतंत्र विहार करना चाहता हूं। महावीर ने कहा- 'अहासुहं ।' यदि गुरु से कहा जाता तो गुरु रोक देते-नहीं, अभी मत जाओ। इष्ट हमारा वही होगा जो भावजगत् से ऊपर चला गया। इष्ट वही हो सकता है जो भावजगत् से अतीत है। न केवल मन से परे (Beyondmind) है किन्तु भाव जगत् से परे (Beyond Eomotion) है, जहां न राग है, न द्वेष, कुछ भी नहीं। वह परम आत्मा, विशुद्ध आत्मा ही इष्ट हो सकता है। अर्हत् वीतराग की ही श्रेणी में आते हैं। जो वीतराग बन गया, अर्हत् बन गया, वह हमारा इष्ट हो सकता है। उसे हम आत्मा, परमात्मा अथवा कुछ भी नाम दे दें। जीवन के उतार-चढ़ाव योग का एक सूत्र है-इष्ट के साथ तादात्म्य। यदि परम शान्ति चाहते हैं, परम सुख चाहते हैं तो शान्तिकेन्द्र में इष्ट की अवधारणा करें, वहां इष्ट की मानसिक प्रतिमा की स्थापना करें। जब-जब कोई कठिनाई आए, उस पर ध्यान केन्द्रित करें, कष्ट दूर हो जाएंगे। हम निश्चिन्त माने जब तक परम १२६ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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