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भावात्मक स्वास्थ्य
शरीर और मन - ये बाह्य जगत् में अभिव्यक्त होने वाले तत्त्व हैं । भावात्मक स्वास्थ्य हमारे अन्तर्जगत् का प्रश्न है । भीतरी जगत् में कुछ ऐसी घटनाएं घटित होती रहती हैं, जिनकी अभिव्यक्ति को हम जानते हैं, किन्तु उनके मूल में जो है, उसे शायद बहुत कम जानते हैं । प्रेक्षाध्यान का सूत्र है - आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें । इसका तात्पर्य है - अन्तर्जगत् की यात्रा करें, हमारे भीतर जो घटित हो रहा है, उसे देखें ।
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कारक है भाव
हमने मन पर बहुत अधिक भार लाद दिया है। यह बेचारा ऐसा दुर्बल घोड़ा है, जिस पर क्षमता से अधिक भार लाद दिया है । इतना भार कि वह उठा नहीं सकता, बार-बार टूटता रहता है। प्रश्न है-लाद कौन रहा है ? इस प्रश्न की गहराई में जाएं तो अन्तर्जगत् का दरवाजा खुलेगा, हमें अनुभव होगा कि हमारे भीतर की दुनिया बहुत बड़ी है और वहां ये सब घटनाएं घटित हो रही हैं । हम मानते हैं, यह आदमी बहुत अच्छा है और वह बहुत बुरा है । यह मित्र है और वह शत्रु है । यह प्रिय है और वह अप्रिय । यह हितकर है और वह अहितकर । यह मानने वाला कौन है ? यह मन का काम नहीं है । मन का काम है स्मृति, कल्पना और चिन्तन करना । यह मानने की बात कहां से आ रही है ? यह सब कुछ हमारे भाव जगत् से आ रहा है । हमने जितना ध्यान मन पर दिया, उतना भावजगत् पर नहीं दिया । कारक और स्रोत वही है, वहीं से सब कुछ घटित हो रहा है 1
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१२२ : नया मानव : नया विश्व
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