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अवस्था में मनोबल और सहिष्णुता बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व होते हैं। हम इस सचाई को समझें-मन, मनोबल, मानसिक स्वास्थ्य का बुद्धि से बहुत निकट का रिश्ता नहीं है। बुद्धि का अलग काम है और मन का अलग काम है। मन का एक काम है सहिष्णुता। सहन करने की शक्ति बुद्धि में कभी नहीं होती। सहन करने की शक्ति हमारे मन की है। जिसका मन स्वस्थ है, वह व्यक्ति हर स्थिति को सहन कर लेता है और जिसका मन रुग्ण होता है, वह सहन नहीं कर सकता। मानसिक स्वास्थ्य की कसौटी है सहिष्णुता। सुश्रुत ने लिखा है
सत्त्ववान् सहते सर्वं, संस्तभ्यात्मानमात्मना। राजसः सह्यमानोन्यैः, सहते नेव तामसः।।
तारतम्य सहिष्णुता का जो सत्त्ववान होता है, वह सब कुछ सह लेता है। कैसी भी स्थिति आए, वह अपने आपको समझा लेता है। जिसका मन रजोगुणप्रधान होता है, वह स्वयं सहन नहीं कर सकता। उसमें सहन करने की शक्ति नहीं होती. किन्तु किसी का सहारा मिला, सहयोग मिला, यह समझ में आ गया-यह अच्छा नहीं है। उसे थोड़ा सम्यक् उपदेश मिला और समझ गया। फिर वह घटना को सहन कर लेगा। जिसका मन तमोगुणप्रधान है, वह न स्वयं समझ सकता है, न समझाने पर समझ सकता है, वह किसी भी प्रकार सहन नहीं कर सकता।
ये तीन प्रकार की स्थितियां घटित होती हैं। कभी-कभी व्यापार में हानि भी हो जाती है, परिवार का कोई इष्ट व्यक्ति चला जाता है। कुछ लोग ऐसे सत्ववान् होते हैं कि वे उस घटना को पी जाते हैं, सारे दुःख को पचा लेते हैं। दूसरों को कुछ पता ही नहीं चलता। कुछ लोग समझाने पर समझते हैं। अनेक परिवार किसी पारिवारिकजन के वियोग होने पर पूज्य गुरुदेव के दर्शनार्थ आते हैं। पूज्य गुरुदेव से उन्हें प्रबोध मिलता है, संबल मिलता है, वे समझ जाते हैं, उनका आर्तध्यान, चिन्ता शोक आदि दूर हो जाते हैं। कुछ लोग तमोगुणप्रधान होते हैं। न वे स्वयं समझ पाते हैं और न समझाने पर समझ पाते हैं। ब्रह्मापि तं नरं न रंजयति-उन्हें ब्रह्मा भी रंजित नहीं कर
मानसिक स्वास्थ्य : ११७
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