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________________ उसी समय एक बैलगाड़ी उस झरने के प्रवाह को पार करती हुई निकली। जल गन्दा हो गया। शिष्य वापस आ गया। गुरु से निवेदन किया-गुरुदेव ! वह जल गंदा है, अपने काम का नहीं है। आगे चलकर कहीं पीयेंगे। गुरु ने कहा-तुम यहीं बैठो। दस मिनट बाद फिर आदेश दिया-जाओ, पानी लाओ। शिष्य गया और उसी झरने का स्वच्छ जल भर ले आया। गुरु ने कहा-'वत्स ! पानी तो बहुत निर्मल है और तुम कह रहे थे कि बहुत गन्दा है।' _ 'महाराज ! उस समय बैलगाड़ी से निकलने पर जल गंदला हो गया था। _ 'वत्स ! निर्णय परिस्थिति के आधार पर नहीं, प्रकृति के आधार पर लेना चाहिए। झरने की प्रकृति गंदी नहीं है। उसका पानी निर्मल ही होगा। तुमने परिस्थिति के आधार पर निर्णय ले लिया। तुम प्रकृति को नहीं जानते, केवल परिस्थिति को जानते हो।' स्थायी तत्त्व है प्रकृति जिसका सत्त्व चल होता है, वह मनोविकारी होता है, परिस्थिति और वातावरण के आधार पर निर्णय लेता है। वर्तमान समाजमनोविज्ञान और समाजशास्त्र में परिस्थितिवाद अधिक प्रभावी है। परिवेश, परिस्थिति और वातावरण ही हमारे लिए निर्णायक बन गए हैं। वास्तव में हमने इस तथ्य को भुला दिया है कि मनुष्य की प्रकृति क्या है ? प्रकृति को जाने बिना केवल परिस्थिति के अनुसार ही सारे निर्णय लिए जा रहे हैं। इससे बहुत भ्रांतियां और गलतियां हो रही हैं। परिस्थति का भी अल्पकालिक मूल्य होता है, सामाजिक मूल्य होता है। परिस्थिति होती है और चली जाती है। स्थायी तत्त्व परिस्थिति नहीं है, स्थायी तत्त्व है प्रकृति । अगर हम प्रकृति को समझें तो हमारे बहुत सारे निर्णय सही होंगे। मानसिक स्वास्थ्य की कसौटी गीता, सांख्यदर्शन और चरक ने सत्त्व, रजस्, और तमस्-इन तीनों के आधार पर मन का विश्लेषण किया है, मन को समझने का प्रयत्न किया है। ११६ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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