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________________ 'तुम्हें फिर किस बात का शौक है ? ऋषियों ने कहा है पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जलमन्नं सुभाषितम् । मूढः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते। पृथ्वी में तीन ही रत्न होते हैं-जल, अन्न और सुभाषित। पानी का कुआं तुम्हारे घर में विद्यमान है। अन्न का भण्डार भरा है और पारिवारिकजन सब अनुकूल हैं, मृदुवाणी बोल रहे हैं। फिर तुम शोकाकुल क्यों हो ? वह आदमी मूढ़ होता है, जो पत्थर के टुकड़ों को रत्न मान कर रोता है।' सेठानी को बोध पाठ मिल गया। चल सत्त्व स्थिर सत्त्व बन गया। स्थिरसत्त्व का निदर्शन पूज्य गुरुदेव के जीवन में एक प्रकरण आया अग्नि परीक्षा का। अग्नि परीक्षा सीता की हुई थी और अग्नि परीक्षा पूज्य गुरुदेव संत तुलसी की भी हुई। सचमुच वह ऐसा समय था कि अगर कोई चल सत्व व्यक्ति होता तो घुटने टिक जाते। स्थिरसत्त्व गुरुदेव का कुछ भी नहीं बिगड़ा। दूसरों की क्या, अन्तरंग परिषद् के साधुओं और श्रावकों ने कहा-महाराज ! आपने जनता के लिए इतना काम किया, अब आप देख लीजिए कि जनता कैसी होती है ! अब आपको अणुव्रत का सारा काम बन्द कर देना चाहिए। तरह-तरह के सुझाव और परामर्श आए। स्थिरसत्त्व गुरुदेव ने कहा-'हमने काम पूरा नहीं किया, इसलिए ऐसा हुआ है। अब हमें दुगुनी शक्ति से काम करना चाहिए।' यह अन्तर है चल सत्त्व का और स्थिर सत्त्व का। जिसका सत्त्व या मन बहुत चंचल है, वह तत्काल परिस्थिति के अनुकूल निर्णय ले लेता है। वह यह नहीं सोचता कि आगे चल कर क्या होगा ? स्थिर सत्व परिस्थिति के आधार पर कभी निर्णय नहीं लेता। वह प्रकृति के आधार पर निर्णय लेता है। परिस्थिति : प्रकृति सन्त विश्राम कर रहे थे। पास में एक झरना बह रहा था। सन्त ने शिष्य को आदेश दिया-झरने से एक लोटा जल भर कर लाओ। शिष्य गया। मानसिक स्वास्थ्य : ११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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