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सें व्यथा को प्रकट नहीं होने देता पर शरीर पर उसका प्रभाव हो जाता है। शरीर में प्रकम्पन होता है, भय की मुद्रा बन जाती है।
तीसरा है चल सत्त्व । चल सत्त्व वह होता है, जिसका मन बड़ा चंचल है, विक्षिप्त है, जिसमें हर प्रकार की चंचलता बनी रहती है।
चौथे प्रकार का सत्त्व है-स्थिर सत्त्व। जिसका सत्त्व स्थिर है, वह किसी भी स्थिति में डांवाडोल नहीं होता, उसे कोई भी परिस्थिति विचलित नहीं कर सकती। चल सत्त्व : स्थिर सत्त्व धनाढ्य व्यक्ति के घर चोरी हो गई। काफी धन चोर ले गए। वह व्यक्ति स्थिर सत्त्व था। लोग संवेदना प्रकट करने आए, बोले-आपके घर चोरी हो गई। सेठ ने कहा-कोई खास बात नहीं है।
'इतना धन चला गया और आप कह रहे हैं-कोई खास बात नहीं ?
उसने कहा-'हां, इसमें कोई खास बात नहीं है, धन आता है, चला जाता है। मैंने ही कमाया था। फिर कमा लूंगा।'
सेठ की पत्नी चल सत्त्व थी। वह रोने लग गई, हाय-त्राय करने लग गई, हाथ-पैर पटकने लग गई। सेठ ने एक ज्ञानी सन्त को निवेदन किया-महाराज ! आप इसे समझाएं, चिन्ता तो मुझे होनी चाहिए, क्योंकि कमाने वाला तो मैं हूं, यह क्यों दुःख कर रही है। सन्त ने सेठानी से पूछा-'क्या हुआ ?
'महाराज ! लाखों का धन चला गया।' 'तुम्हारे घर में कुआं है क्या ? 'हां। 'पानी है उसमें ? 'हां, महाराज ! 'तुम्हारे घर में धन का भण्डार सारा ही खाली हो गया ? 'नहीं, महाराज ! वह तो अभी बहत है।' 'तुम्हारे घर वालों का व्यवहार, तुम्हारे नौकर-चाकरों का व्यवहार कैसा
'महाराज ! व्यवहार बहुत अच्छा है। पहले जैसा ही है।'
११४ : नया मानव : नया विश्व
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