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मन का कार्य ज्ञानात्मक है, किन्तु साथ-साथ चिन्तात्मक भी है। मनोबल का विकास हो जाए तो शायद इस दुनिया में कष्ट बहुत कम हो जाएं। कहा गया है-'अज्ञानी के लिए यह संसार दुःखों का भण्डार है और ज्ञानी के लिए आनन्दमय है। पूछा गया-संसार में प्रकाश है या अन्धकार ? इसका उत्तर दिया गया-आदमी अन्धा है, चक्षुहीन है तो अन्धकार ही अन्धकार है और ज्योतिष्मान् है, चक्षुष्मान् है तो प्रकाश ही प्रकाश है। प्रकाश सारा आंख से ही तो है। अज्ञानी के लिए यह संसार दुःखमय है, इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है-जिसका मनोबल मजबूत है, उसके लिए इस दुनिया में दुःख नहीं हैं या बहुत कम हैं और जिसका मनोबल कमजोर है, उसके लिए दुःख ही दुःख हैं।
भगवान् महावीर ने चार प्रकार के सत्त्व बतलाए हैं•ही सत्त्व .ह्री मनः सत्त्व •चल सत्त्व •स्थिर सत्त्व
ही सत्त्व ही सत्त्व व्यक्ति लज्जा से युक्त होता है। उसका आत्मानुशासन इतना गहरा होता है कि वह कष्ट आने पर भी उसको कहीं प्रकट नहीं करता। नीतिमान् पुरुष वह होता है, जो धन के नाश और मन के ताप को किसी के सामने प्रकट नहीं करता।
अर्थनाशं मनस्तापं मतिमान् न प्रकाशयेत्। ही सत्त्व व्यक्ति का मनोबल मजबूत होता है। वह इतना आत्मानुशासी और लज्जालु होता है कि अपनी बात किसी के सामने प्रकट नहीं करता। न उसे भय और शारीरिक चेष्टा के द्वारा प्रकट होने देता है। किसी घटना का उस पर कोई मानसिक असर नहीं होता।
ही मनः सत्त्व व्यक्ति सत्त्व सधा हुआ होता है पर गहरा सधा हुआ नहीं होता। वह मन
मानसिक स्वास्थ्य : ११३
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