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________________ मानसिक स्वास्थ्य शरीर स्थूल है, दृश्य है, हमें दिखाई देता है। मन सूक्ष्म है, अदृश्य है, कार्य से जाना जाता है, पर दिखाई नहीं देता। शरीर, इन्द्रिय और मन-ये तीन कार्यकारी रूप में हमारे सामने आते हैं। जो इन्द्रियों का संचालक है, वह मन है। इन्द्रियों के द्वारा जिन विषयों का ग्रहण होता है, मन उनका संकलन करता है। अगर मन नहीं होता तो प्रत्येक इन्द्रियों का अपना-अपना कार्य होता, उनका संकलन नहीं होता और संकलन के बिना हमारी सारी विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती। व्याधि और आरोग्य का आश्रय मन संकलक और प्रवर्तक है। कल्पना, स्मृति, चिन्तन, तर्क-वितर्क--ये मन के सामान्य कार्य हैं। मन हमारे लिए बहुत उपयोगी है। जो उपयोगी होता है, वह कष्टदायी भी हो सकता है। मन बहुत उपयोगी है, मन बहुत कष्टदायी भी होता है। महर्षि चरक ने लिखा शरीरं सत्वसंज्ञं च व्याधिनामाश्रयोमतः तथा सुखानाम् - शरीर और मन ये दो व्याधियों के आश्रय हैं। शरीर भी रुग्ण बनता है और मन भी रुग्ण बनता है। केवल व्याधि का आश्रय ही नहीं, आरोग्य का आश्रय भी है। स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर हमारे लिए बहुत कल्याणकारी हैं। बीमार मन हमारे लिए परेशानी पैदा करने वाला होता है। ११२ : नया .मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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