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जरूरी है स्वास्थ्य चेतना का विकास प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में स्वास्थ्य चेतना के विकास का चिंतन विकसित हुआ है। जैसे आध्यात्मिक चेतना का विकासे जरूरी है, वैसे ही स्वास्थ्य की चेतना का विकास अपेक्षित है। पहले स्वास्थ्य की चेतना जगाए। आदमी स्वस्थ कैसे रह सकता है, इसका ज्ञान करें तो वह अपने आप स्वस्थ रहेगा और शायद चिकित्सा की अपेक्षा भी कम हो जाएगी। जो लोग स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं
और स्वस्थ रहने के नियमों को जानते हैं, उन्हें चिकित्सा की बहुत कम अपेक्षा होती है। सारे रोग कर्मज नहीं होते। आयुर्वेद में चार प्रकार के रोग माने गए हैं। उनमें एक है कर्मज। कुछ बीमारियां कर्मज होती हैं। उनकी चिकित्सा आत्मशोधन द्वारा ही संभव होती है। कुछ मौसम की होती हैं, जैसे सर्दी का मौसम आया, जुकाम लग गई। गर्मी आयी तो गर्मीजनित बीमारी लग गई। ये सामान्य बातें हैं। किन्तु भयंकर बीमारियों से बहुत बचा जा सकता है, यदि हम स्वास्थ्य के नियमों को जानें और स्वास्थ्य की साधना करें।
आसन प्रेक्षाध्यान में आसन और प्राणायाम का विधान है। कुछ ध्यान की पद्धतियों में आसन वर्जित माना गया है। बौद्धों की ध्यान पद्धति विपश्यना में आसन वर्जित माना जाता है और हम आसन को अनिवार्य मानते हैं। हमारा मत है-ध्यान के साथ अगर आसन नहीं है तो पाचनतंत्र कमजोर हो जाएगा। ध्यान में बहुत शक्ति लगानी पड़ती है, कान्सन्ट्रेशन में काफी प्राणशक्ति का नियोजन करना होता है। उस अवस्था में अगर आसन का प्रयोग, प्राणायाम का प्रयोग नहीं है तो पाचनतंत्र गड़बड़ा जाएगा। वह न गड़बड़ाए, इसके लिए आसन होना अनिवार्य है। इसीलिए प्रेक्षाध्यान की पद्धति में आसन मान्य है। आसन का मूल्य स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भी है और चिकित्सा के लिए भी है। पर हम चिकित्सा में पहले क्यों जाएं ? __हम तो स्वास्थ्य के लिए सुरक्षात्मक आसन करें। उन आसनों का प्रयोग करें, जिनसे स्वास्थ्य नहीं बिगड़े। वे आसन करें, जो पाचनतंत्र को सक्रिय रखे, उत्सर्जन तंत्र को सक्रिय रखे, नाड़ीतंत्र का संतुलन बनाए और ग्रन्थितंत्र के स्राव को संतुलित बनाए रखे, श्वसनतंत्र को स्वस्थ रखे।
११० : नया मानव : नया विश्व
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