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ब्रह्मचर्य
तीसरा उपस्तंभ है - ब्रह्मचर्य । आज की समस्या को देखें। जहां स्वास्थ्य के लिए ब्रह्मचर्य जरूरी था, वहां विचार आ गया उन्मुक्त यौन संबंधों का । ब्रह्मचर्य की कोई आवश्यकता नहीं रह गई है । लोग कहते हैं- आज क्या हो गया ? इतने अस्पताल, इतने डाक्टर, इतनी दवाइयां और इतनी रिसर्च, फिर भी बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। रिसर्च के लिए प्रतिवर्ष हजारों-हजारों बेचारे मूक प्राणी, पशु-पक्षी आदि मारे जा रहे हैं। मनुष्य को स्वस्थ रखने के लिए प्राणियों का कितना बलिदान हो रहा है, किन्तु फिर भी मनुष्य स्वस्थ नहीं हो रहा है । नई-नई बीमारियां बढ़ती जा रही हैं । पहले कभी एड्स नाम की बीमारी का नाम भी नहीं सुना गया था, कैंसर का भी कोई विशेष नाम नहीं था। आयुर्वेद में इसे अन्तर्व्रण कहा जाता था। टी. बी. की बीमारी भी बहुत कम थी । इसका नाम था राजयक्ष्मा । यह राजा-महाराजा या बड़े लोगों को ही होती थी । साधारण आदमी को तो राजरोग होने का कोई प्रश्न ही नहीं था | आज इतनी नई-नई बीमारियां हो रही हैं, जिनकी पहचान ही नहीं हो पाती कि कौन-सी बीमारी है । इन सबका कारण एक ही है कि हमने इन्द्रिय- संयम का मूल्य नहीं समझा ।
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भरोसा है चिकित्सा पर
ब्रह्मचर्य संयम का मतलब केवल जननेन्द्रिय-संयम से ही नहीं है । ब्रह्मचर्य बहुत व्यापक शब्द है । इसका मतलब है पांचों इन्द्रियों का संयम । इनका संयम कैसे करना चाहिए, यह जब तक नहीं सीखा जाएगा, हमारा शारीरिक स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रह पाएगा। दिल्ली एक महानगर है । यदि आज से पचास वर्ष पहले यहां सौ अस्पताल थे तो आज हजारों अस्पताल हो गए होंगे। फिर भी सबको निदान नहीं मिल रहा है, चिकित्सा नहीं मिल पा रही है । आखिर क्यों ? इसलिए कि हम चिकित्सा पर भरोसा करते हैं, स्वास्थ्य पर भरोसा नहीं करते हैं । हम स्वस्थ रहने की प्रक्रिया को नहीं जानते । थोड़ी-सी बीमारी होती है और आदमी चिकित्सा के लिए दौड़ पड़ता है । होना यह चाहिए कि पहले स्वास्थ्य पर विचार करे ।
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शारीरिक स्वास्थ्य : १०६
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