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अन्यायोपर्जित है। ऐसा भोजन शरीर पर बड़ा प्रतिकूल प्रभाव डालता है। यदि इसे कसौटी मानें तो ढूंढना पड़ेगा कि आज कौन बच रहा है ? हमारे लिए भी बहुत मुश्किल हो रहा है क्योंकि आता तो वहीं से है। गृहस्थ के यहां से ही तो बना-बनाया मिलता है। ऋत आहार को परमार्जित कर इतना अवश्य करें-'जब तक पूरी भूख न हो, तब तक न खाएं।' आजकल यह भी नहीं चलता है और बड़े लोगों के तो बिल्कुल ही नहीं चलता है। उनके नियम ही अलग हैं। छोटे लोग बार-बार नहीं खाते, उन्हें मिलता भी नहीं है। बड़े लोगों को तो हर समय सुलभ है। कहीं भी जाएं, चाय-नाश्ता तो तैयार है। कितनी ही बार खाएं, उनके लिए चिन्ता की कोई बात नहीं है। यह स्थिति स्वास्थ्य के लिए घातक बनती है। प्रतिक्रिया से बचें प्रतिक्रिया हर व्यक्ति में होती है। कोई व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा, जिसमें क्रिया हो, लेकिन प्रतिक्रिया न हो। लेकिन कभी-कभी बहुत उग्र प्रतिक्रियाएं होती हैं। वे हमारे पाचनतंत्र को गड़बड़ा देती हैं। स्वास्थ्य का सूत्र है प्रतिक्रिया का भी सीमन करें, विरति करें और अति प्रतिक्रिया न करें। केवल प्रतिक्रिया का जीवन न जीएं उससे बचने का अभ्यास करें। स्वास्थ्य और मैत्री स्वास्थ्य का एक सूत्र है मैत्री। जिस व्यक्ति ने शत्रुता के भाव की आदत डाल ली, वह हर बात में दूसरे को शत्रु मान लेता है। मस्तिष्क में हर समय एक ही बात घूमती रहती है कि उसको ऐसे गिराना है, इस तरह मिटाना है, इस तरह सबक सिखाना है। जो इस प्रकार शत्रुतापूर्ण चिन्तन कस्ता है, उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रह सकता। यह शत्रुता का भाव बहत भयंकर होता है। यह वैचारिक जहर है। स्थानांग सूत्र में अकाल मृत्यु के सात कारण बताए गए हैं। सात कारणों से व्यक्ति बिना मौत मरता है। जीना है नब्बे वर्ष, मर जाएगा पचास वर्ष में, चालीस या बत्तीस वर्ष में। एक व्यक्ति को हार्ट अटैक हो गया, कैंसर हो गया पर यह हुआ कैसे ? कैंसर कोई शारीरिक बीमारी तो है नहीं। वह भावनात्मक बीमारी
शारीरिक स्वास्थ्य : १०७
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