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संदर्भ अवस्था का
अवस्था की दृष्टि से विचार करें। इस पर आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ - इन तीन दृष्टियों से विचार किया गया। एक पुरुष में बचपन से लेकर चालीस वर्ष के आसपास कफ की प्रधानता रहती है । उसके बाद पित्त की प्रधानता रहती है और सत्तर वर्ष के बाद वायु की प्रधानता रहती है । एक आदमी सत्तर वर्ष को पार कर गया और वातकारक चीजें खाता है तो उसका स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा।
संदर्भ काल का
काल की दृष्टि से विचार करें। दिन का पहला भाग कफप्रधान होता है । मध्याह्न का भाग पित्तप्रधान होता है और सायंकाल का भाग वातप्रधान होता है । यदि शाम को खरबूजा खाएं, अमरूद खाएं या उस जैसी दूसरी चीजें खाएं तो बीमार ही पड़ेंगे। इसलिए भोजन के साथ हित का विवेक भी होना चाहिए। सूर्यास्त के बाद भोजन करते हैं, सूर्य की किरणें नहीं मिलती हैं तो पाचनतंत्र सिकुड़ जाता है । यदि वह भोजन संतुलित है तो भी हितकर नहीं है ।
संदर्भ स्वरशास्त्र का
स्वर की दृष्टि से विचार करें । स्वरविज्ञान कहता है- - जब सूर्यस्वर चले तब भोजन करना चाहिए। सूर्यस्वर नहीं चल रहा है, चाहे जितना संतुलित भोजन करें, स्वास्थ्य अनुकूल नहीं होगा। चंद्रस्वर में पानी पीना और सूर्यस्वर में भोजन करना पाचनतंत्र के लिए बहुत वैज्ञानिक नियम है भोजन किया चन्द्रस्वर में और पानी पिया सूर्यस्वर में, स्वास्थ्य बिगड़
जाएगा ।
आहार न्यायोपार्जित हो
ऋत आहार का अर्थ है न्यायोपार्जित आहार । न्यायोपार्जित भोजन में पवित्रता होती है । हमारे स्वास्थ्य का सम्बन्ध केवल पदार्थ से ही नहीं है, हमारी वृत्तियों से भी है। बुराई, छल-कपट, धोखा, प्रवंचना आदि से कमाया गया
१०६ : नया मानव : नया विश्व
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