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हैं, वह है प्रसन्नात्मेन्द्रियमन - आत्मा, मन और इन्द्रियों की प्रसन्नता । शरीरशास्त्र की दृष्टि
शरीर शास्त्र की दृष्टि से विचार करें। जिसका पाचनतंत्र और उत्सर्जनतंत्र ठीक काम करता है, वह स्वस्थ है । व्यक्ति ने खाना खाया, जितना काम में लेना था, लिया और जो शेष बचा, उसका उत्सर्जन कर दिया। यदि ऐसा होता है तो मानना चाहिए - व्यक्ति स्वस्थ है। इससे आगे चलें । जिसका नाड़ीतंत्र, ग्रन्थितंत्र संतुलित ढंग से काम कर रहा है, वह व्यक्ति स्वस्थ है । और आगे बढ़ें, स्वस्थ शब्द पर भी विचार करें। प्राचीन कोण है - जिसका अस्थि संस्थान अच्छा है, वह आदमी स्वस्थ है । जिसकी अस्थियां मजबूत और शक्तिशाली हैं, वह आदमी स्वस्थ है । हमारा सारा शरीर हड्डियों के आधार पर खड़ा है। पूरा ढांचा ही हड़ियों का है। जैन योग में बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से समझाया गया है - जिस व्यक्ति का संहनन- अस्थि संरचना जितनी मजबूत है, वह उतना ही अच्छा ज्ञानी और ध्यानी बन सकता है । ध्यान और ज्ञान का मापन होता है अस्थि संरचना के आधार पर । ध्यान वह कर सकता है, जिसका अस्थिसंस्थान मजबूत है । केवल ज्ञान उसमें अवतरित होता है, जो वज्रऋषभनाराच संहनन से संपन्न है ।
हमारे शरीर के स्वास्थ्य का बहुत ज्यादा संबंध है स्पाइनल कोड का सुषुम्ना से । इसमें तैंतीस मनके हैं, जिन्हें बर्टीब्रेट कहते हैं । ये जितने लचीले होंगे, आदमी उतना ही स्वस्थ रहेगा । स्वास्थ्य की परीक्षा करनी हो तो पृष्ठरज्जु को देखें । पृष्ठरज्जु मुड़ी हुई है, तिरछी है तो समझें - स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है । सुअस्थि अस्ति यस्य स स्वस्थः - जिसका अस्थिसंस्थान अच्छा है, वह आदमी स्वस्थ है । संस्कृत के अनुसार इसकी व्युत्पत्ति यह भी की जाती है - 'स्वस्मिन् तिस्ठति इति स्वस्थ' जो अपने आप में ठहरता है, वह स्वस्थ है किन्तु यह बौद्धिक बात है । हमारा जो ग्रे मेटर, मज्जा है, उसमें हमारे ज्ञान का, संस्कारों का बहुत बड़ा भाग है । अस्थियों में होने वाली मज्जा में संस्कार संचित रहते हैं । जिसकी मज्जा जितनी बढ़िया है, उसका ज्ञान भी उतना ही अच्छा होता है, ध्यान भी उतना ही अच्छा होता है और
१०४ : नया मानव: नया विश्व
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