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शारीरिक स्वास्थ्य
प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद आदि प्रणालियों में स्वास्थ्य विज्ञान पर बहुत ध्यान दिया गया है। मेडिकल साइंस में चिकित्सा विज्ञान बहुत विकसित हुआ है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उसमें स्वास्थ्य विज्ञान कम विकसित हुआ है। दो बातें स्पष्ट हैं-स्वस्थ रहने का विज्ञान और एक कभी आदमी अस्वस्थ बन जाए, रुग्ण हो जाए तो उस बीमारी की चिकित्सा करने का विज्ञान । यद्यपि एलोपैथी चिकित्सा में यह सूत्र बराबर रहा है-चिकित्सा की अपेक्षा पहले स्वास्थ्य की सुरक्षा करना अच्छा है पर इस पर जितना ध्यान 'नेचुरोपैथी' और आयुर्वेद में दिया गया, उतना शायद मेडिकल साइंस में नहीं दिया गया। स्वस्थ कौन ? हम सबसे पहले स्वास्थ्य विज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करें। व्यक्ति की यह चिर आकांक्षा है कि वह स्वस्थ रहे, बीमार न पड़े। स्वस्थ रहने के लिए यह जानना भी जरूरी है कि किसे स्वस्थ मानें ? स्वस्थ कौन हो सकता है ? आयुर्वेद की परिभाषा है जिसकी आत्मा और इन्द्रियां प्रसन्न हैं, वह स्वस्थ है। जिसकी आत्मा और इन्द्रियां प्रसन्न नहीं हैं स्वस्थ नहीं है। सम दोष, सम अग्नि-ये छिपे हुए लक्षण हैं। जो सामने हैं, उसे देखें, स्वस्थता का पता लग जाएगा। मन प्रसन्न है, इन्द्रियां निर्मल हैं तो समझें सब क्रियाएं ठीक चल रही हैं। समदोषोसमाग्निश्च-ये बाद में आने वाले लक्षण हैं। जो मूल लक्षण है, जिसको ऐकान्तिक या निश्चित लक्षण कहते
शारीरिक स्वास्थ्य : १०३
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