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अंतिम लक्ष्य समय पर चिन्तन करना, सही निर्णय लेना बहुत कठिन होता है। वह तब संभव है, जब व्यक्ति भीतर में चला जाए। प्रेक्षाध्यान का मूल सूत्र रहा अन्तर्दृष्टि का विकास । चिन्तन का विकास मान्य है, पर सर्वथा मान्य नहीं है। चिन्तन करना है तो चिन्तन का निरोध भी करना है। कल्पना का विकास करना है तो कल्पना का निरोध भी करना है। हमारा अंतिम लक्ष्य निर्विचार की स्थिति तक पहुंचना है। ध्यान करने वाला भी तब तक सफल नहीं होता, जब तक वह स्व-नियोजन करना नहीं जानता। बहुत लोग ध्यान का अभ्यास करते हैं, लेकिन सफल नहीं होते। इसलिए कि वे स्व-नियोजन करना नहीं जानते। ___ पाश्चात्य विद्वानों ने सेल्फ मैनेजमेण्ट की बात अध्यात्म के संदर्भ में नहीं की। समाज में उद्योग-व्यवस्था में एक व्यक्ति सफल कैसे हो, इसके लिए सेल्फ मैनेजमेंट की विधि का विकास किया गया। जिसने दूर का लक्ष्य बनाया है, जिसे बड़े लक्ष्य तक पहुंचना है, वह स्व-प्रबन्धन न करे तो वहां तक कैसे पहुंचेगा ? इसलिए अपेक्षा है कि जो व्यक्ति ध्यान शुरू करे, वह उसके साथ-साथ स्व-प्रबन्धन के सूत्रों को भी समझे। कैसे अपनी शक्तियों का नियोजन करे ? कैसे अपने जीवन की सारी अवस्थाओं का नियोजन करे ? महत्त्वपूर्ण सूत्र बाल, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध-ये जीवन की चार अवस्थाएं हैं। मृत्यु पांचवीं अवस्था है। अवस्थाओं के ये जितने पड़ाव हैं, उन सबका ठीक तरह से नियोजन करें। बीस वर्ष की अवस्था में बाल-अवस्था के अनुभवों से लाभ उठाएं। पचास वर्ष में पहुंच जाएं तो युवावस्था के अनुभवों से लाभ उठाएं। एक युवक में इतनी शक्ति है कि वह दो घण्टा बैठकर ध्यान कर सकता है। हो सकता है कि सत्तर वर्ष की अवस्था में ऐसा न कर सके। इसलिए उसे उस समय का नियोजन इस दिशा में करना चाहिए। योग का एक नियम है- कुछ शक्तियों का विकास-त्राटक, कुंडलिनी या ऊर्जा शक्ति का विकास जितना यौवन में संभव है, उतना वृद्धावस्था में संभव नहीं है। वृद्धावस्था में
स्व-प्रबन्धन : १०१
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