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नहीं है। यह अपना स्व-व्यवस्थापन है । महावीर ने कहा- अपनी अन्तर्दृष्टि का विकास करो और देखो - तुम क्या कर रहे हो दूसरों के प्रति ? उसका असर क्या हो रहा है ? सेल्फ मैनेजमेंट में अनेक सूत्र बतलाए गए हैं । उनमें यह अपना व्यवस्थापन शायद सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र है । अपनी आवश्यकताओं का नियोजन करें, अपनी प्रवृत्तियों और व्यवहार का व्यवस्थापन करें। आज हमारी सबसे बड़ी कठिनाई यही है कि हम इन सबका सम्यक् नियोजन नहीं करते । जो व्यक्ति के पास है, उसका भी वह नियोजन नहीं कर पाता। आज इच्छा, आवश्यकता अनियंत्रित है, अनियोजित है । उसी का परिणाम है कि आज आदमी का मूल्य बाजार का मूल्य बन गया है। श्री अटलबिहारी वाजपेयी की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगी। उन्होने कहा - 'अमेरिका के लिए सारी दुनिया एक बाजार है और हमारे लिए सारी दुनिया एक कुटुम्ब है ।' हमारा सारा व्यवहार कुटुम्बवत् है । यह कुटुम्ब की भावना स्वनियोजन में इस तरह मुखरित होती है कि दूसरा भी आदमी है । मैं अपनी इच्छाओं, आवश्यकताओं, अपेक्षाओं और प्रवृत्तियों का ऐसा नियोजन करूं, जिससे दूसरों को हानि न पहुंचे और मेरी वृत्तियों में कहीं क्रूरता न पनपे ।
नियोजन निर्मलता के साथ
प्रेक्षाध्यान का संकल्पसूत्र है - चित्त की निर्मलता । इस संकल्प से सम्पत् नियोजन होता है । उद्योग का इतिहास, व्यवसाय और शासन का इतिहास छलना से भरा हुआ इतिहास है । हम ऐसी घटनाएं बहुत सुनते हैं - दो व्यावसायिक साझीदार । दोनों में बड़ा प्रेम । लेकिन इतना अविश्वास का चक्र शुरू हुआ कि एक ने सबका - सब हथिया लिया और दूसरे को बिल्कुल खाली हाथ वापस कर दिया । यह सारा क्यों चलता है ? इसीलिए चलता है कि नियोजन के पीछे हमारे चित्त की निर्मलता नहीं है । हम निर्मलता के साथ अपना नियोजन करें । इस नियोजन में हमारे व्यवहार और प्रवृत्तियों का नियोजन आता है। समय का नियोजन भी इसके साथ जुड़ा हुआ है 1
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