SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य की चिन्ता कहां है ? इस सन्दर्भ में एक प्रश्न उभरता है - एक व्यक्ति कारखाना चलाता है, हजारों-हजारों मजदूरों को काम मिलता है । यदि वह अपनी आवश्यकता का संयम कर लेगा तो हजारों आदमियों का पेट कैसे भरेगा ? यह बहुत अच्छा तर्क है और इस तर्क ने आदमी को लुभाया भी है, ललचाया भी भ्रम में भी डाला है । वास्तविकता यह है कि हर व्यक्ति का अपना काम है । प्रधानमंत्री ने पंचशील कार्यक्रम को एक नया रूप दिया। पंचशील का जो पंचसूत्री कार्यक्रम है, उसमें उसकी नई व्याख्या की गई है। उसमें ग्रामोन्मुख विकास की बात प्रमुख है । गांधीजी ने कहा था- हर व्यक्ति को अपना काम मिलना चाहिए। चरखा कोई बहुत बड़ा और नया आविष्कार नहीं था । किन्तु एक सन्दर्भ में यह बहुत बड़ी बात थी कि हर व्यक्ति के हाथ में उसकी आजीविका या अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने का साधन होना चाहिए। रोटी के बिना वह रह नहीं सकेगा। गांधीजी ने इसके लिए एक छोटा-सा आलम्बन दिया। हर व्यक्ति के पास अपना श्रम, अपना कार्य होना चाहिए किन्तु वह अब तक नहीं हुआ। बड़े-बड़े कारखाने, उद्योग और उनके द्वारा बड़े-बड़े प्रलोभन दिए जा रहे हैं। अगर यह तर्क दमदार होता तो फिर आज आदमियों को क्यों निकाला जा रहा है आज सारा काम रोबोट पर, मशीनों और यंत्रों पर आ रहा है । हजारों आदमी जिस काम को करते थे, मात्र पांच आदमी उस काम को कर रहे हैं। अगर वास्तव में आदमी की चिन्ता है तो फिर यह क्यों ? फिर यह मशीनीकरण और यंत्रीकरण नहीं होना चाहिए। सब कुछ आदमी के द्वारा आदमी के लिए होना चाहिए था पर आज सब कुछ उलट गया। सारा कुछ अपनी इज्जत, प्रतिष्ठा और शोहरत के लिए हो रहा है 1 दुनिया बाजार है या कुटुम्ब परिसीमन का अर्थ है आवश्यकताओं का अल्पीकरण । महावीर ने कहा -- किसी की आजीविका को मत छीनो । यह उस समय बहुत बड़ी बात थी । तुम दूसरों की आजीविका को मत छीनो, उस पर तुम्हारा अधिकार नहीं है । यह अपने चित्त की व्यवस्था हैं, केवल कानूनी व्यवस्था I ६८ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy