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ध्यान के द्वारा बहुत प्राप्त होता है । ऐसा अभ्यास डालें कि जिस समय जो
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करें, वही करें।
यही साधना है
एक महान् साधक से पूछा गया - आपकी साधना क्या है ?
वह बोला- मेरी साधना बहुत सरल है ।
'क्या है वह साधना ?
'मेरी साधना यह है कि भूख लगती है तो खा लेता हूं और नींद आती है तो सो जाता हूं ।'
'क्या यही साधना है' आपकी ?
'हां'
उसने कहा - 'यह तो बहुत सीधी बात है । मैंने तो सुना था कि साधना बड़ी जटिल बात है । यह तो मैं भी करता हूं ।'
'हां, यही साधना है ।' साधक ने यह कहते हुए प्रश्नकर्ता को निमंत्रण दिया- 'आज आप मेरे साथ भोजन करें ।'
प्रश्नकर्ता ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया ।
दोनों ने साथ में भोजन किया। भोजन के उपरान्त साधक ने 'भोजन के साथ क्या-क्या किया ?
चिन्तन किया। पूरे एक सप्ताह की योजना बना ली कि इस सप्ताह क्या-क्या करना है ?
'खूब
'फिर आपने भोजन कहां किया ? दिमाग तो लगा था योजना बनाने में। तुम्हारी चेतना ने तो भोजन किया नहीं, केवल जड़ शरीर यांत्रिक क्रिया करता रहा ।'
' और आपने क्या किया ?
'मैंने सिर्फ भोजन किया, भोजन के दौरान उसकी हर क्रिया को जानता रहा । इसके सिवाय मेरे मन में और कोई विकल्प नहीं उठा ।'
एक साधक व्यक्ति के लिए भोजन भी साधना है । ध्यान का यही परिणाम है कि हम केवल जानें, भोजन करना है तो केवल भोजन करें, चलना हैं तो केवल चलें । यह केवल वाली बात समझ लें, अपनी योग्यता का विकास
६६ : नया मानव : नया विश्व
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पूछा
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