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द्वारा प्रदत्त धारणा से बहुत चलता है । इसीलिए अध्यात्म ने यह सूत्र दिया था- तुम आत्म-निरीक्षण करो, पर-परीक्षण के आधार पर मत चलो, दूसरे के हाथ की कठपुतली मत बनो । अपने भाग्य की डोर दूसरों के हाथ में मत दो, अपने ही हाथ में रखो। मैं कैसा हूं, इसका निर्णय स्वस्थ अवस्था में स्वस्थ चिन्तन के समय जैसा मैं कर सकता हूं, शायद दूसरा नहीं कर सकता । दूसरे की अपनी धारणा है, वह अपने स्वार्थ और अपने प्रयोजन से देखता है। उसके आधार पर स्वयं का वैसे ही व्यवस्थापन हो जाएगा तो व्यक्ति सफल नहीं हो सकेगा । स्व- व्यवस्थापन के लिए, स्व-नियोजन के लिए बहुत आवश्यक है आत्म-परीक्षण पर भरोसा करना और आत्मविश्वास को प्रबल बनाए रखना ।
योग्यता का विकास
स्व-प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है - अपनी योग्यता का विकास। अपने में जो है, उसे देखो। अपने में जो कमियां हैं, उन्हें भी देखो । अपने में जो अच्छाइयां हैं, उन्हें भी देखो | णो हीणे णो अइरित्ते- न हीन मानो, न अतिरिक्त मानो । यथार्थ का मूल्यांकन करो और फिर अपनी योग्यता का विकास करो, अपनी इच्छाशक्ति का विकास करो, कल्पनाशक्ति, चिन्तनशक्ति, स्मृतिशक्ति और अन्तर्दृष्टि का विकास करो। ये सारी बातें प्रेक्षाध्यान से जुड़ी हुई हैं ।
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प्रेक्षाध्यान के सन्दर्भ में कहा गया - कल्पनाशक्ति का विकास करो, किन्तु उसका दुरुपयोग मत करो । संकल्पशक्ति का विकास करो, पर उसका दुरुपयोग मत करो। शक्ति का विकास होता है किन्तु यदि वह व्यर्थ में खर्च होती है तो विकसित शक्ति निकम्मी चली जाती है । जिस समय जो काम करना है, उस समय वही काम करो । अभी कल्पना करने बैठे हो तो कल्पना ही करो । चिन्तन करने के लिए बैठे हो और कल्पना बीच में बाधक बन जाए तो उसका दुरुपयोग हो जाएगा। भोजन के लिए बैठे हो और कल्पना करनी शुरू कर दी तो न ठीक से भोजन हो पाएगा, न कल्पना हो पाएगी । ठाणं सूत्र में कहा गया है - अनन्नमणे - अन्य मन न हो । केवल एक मन चले, दूसरा मन बीच में न आए। नियोजन और व्यवस्थापन का यह कौशल
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स्व-प्रबन्धन : ६५
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