SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्व-प्रबन्धन आदमी दूसरों को देखता है, दूसरों की खोज करता है। यह हमारी इन्द्रियों द्वारा प्रदत्त प्रकृति बन गई। ध्यान का मुख्य लक्ष्य है-अपनी खोज करना अपने आपको समझना। सेल्प मैनेजमेंट की बात अपनी खोज की बात है। इसका विकास पाश्चात्य चिन्तन में हुआ है। इस पर्सनल मैनेजमेंट और अध्यात्म की व्यवस्था को तुलनात्मक दृष्टि से आमने-सामने रखें तो ऐसा प्रतीत होगा कि अध्यात्म का पुराना चिन्तन नए परिवेश, नई भाषा और नए शब्दों में व्यक्त हो रहा है। मैं कौन हूं सेल्फ मैनेजमेंट का पहला विषय अपनी खोज या अपने जीवन का नक्शा बनाना है। उसका सूत्र है-मैं कौन हूं (Who am i?)। महर्षि रमण इस सूत्र को बहुत दोहराते थे। उनकी साधना का यह विशिष्ट सूत्र था-मैं कौन हूं ? सेल्फ मैनेजमेंट का भी पहला सूत्र है-मैं कौन हूं ? इसे पढ़कर महावीर के आचारांग सूत्र का पहला पाठ याद आता है-मैं कौन हूं, कहां से आया हूं और वर्तमान में किस स्थिति में हूं ? मुझे कहां जाना है ? एक ही सत्य, भिन्न भाषा, भिन्न परिप्रेक्ष्य में व्यक्त हुआ है। आखिर अपने को छोड़कर दुनिया में कोई चिन्तन नहीं चलता, कोई व्यवस्था नहीं चलती। अपने आपको तो देखना ही पड़ता है। औद्योगिक सफलता हो, राजनैतिक या धार्मिक सफलता, सबके केन्द्र में है अपने आपका निरीक्षण, अपने आपकी खोज। स्व-प्रबन्धन : ६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy