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की ओर संकेत करती हैं- 'अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत' या 'समय चूकि पुनि का पछताने'-जिस समय काम करना था, उस समय नहीं कर सका, इसका पश्चात्ताप कभी मिटता नहीं है। समय का अतिक्रमण व्यक्ति को अनेक उपलब्धियों से वंचित कर देता है।
जरूरी है कार्यसूची समय प्रबंधन के लिए कार्यसूची बनाना भी जरूरी है। इस सप्ताह में क्या करना है ? प्रतिदिन की भी कार्यसूची होनी चाहिए। आज हमें क्या करना है ? इसका निर्धारण अपेक्षित है। जिनके पास काम अधिक होते हैं, बहुमुखी होते हैं, वे प्रतिदिन की कार्यसूची बनाते हैं। जिनके पास कुछ खास काम नहीं हैं, वे काम का कोई नियत समय नहीं रखते, कुछ भी कभी भी कर लेते हैं, किन्तु जिनका कार्य बड़ा है, वे सूची के आधार पर उनका निर्धारण करते हैं। जैन मुनि के लिए कुछ समय निश्चित हैं। नियत समय पर प्रतिक्रमण, वंदना, प्रवचन-यह समय-श्रृंखला अटूट चलती है। ध्यान के लिए कुछ विशेष नियम हैं। जिस समय ध्यान करो, उसी समय ध्यान करो, जिस समय मंत्र का जप करो, उसी समय प्रतिदिन जप करो। इससे काल का सातत्य (कान्टीन्युटी) रहेगा। कान्टीन्यूटी का मतलब है-नैरंतर्य-निरंतरता रहे। यह नहीं होना चाहिए कि आज ध्यान किया और कल छूट गया। दो दिन ध्यान किया और फिर पांच दिन छोड़ दिया। इससे कोई सफलता नहीं मिलेगी। सफलता के लिए कार्यसूची जरूरी है और जिन्हें कुछ विशिष्ट करना है, उनके लिए तो बहुत आवश्यक है। निरीक्षण कमजोरी का समय एक प्रबंधन का एक सूत्र है-अपनी कमजोरी का निरीक्षण। वह कौन-सी कड़ी है, जो कमजोर है और लक्ष्य में बाधा दे रही है। जब तक कमजोरी की खोज नहीं की जाएगी, उस पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, गति ठीक नहीं हो सकेगी, लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो सकेगी। मानव का स्वभाव है कि वह अच्छी बात ही सुनना चाहता है। सब ठीक है, यह समझ लेने पर बहुत बार धोखा हो जाता है। चाटुकार ठीक समझ लेने का भुलावा देते हैं
६० : नया मानव : नया विश्व
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