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ठीक चार बजे का है । उस समय आदमी जागरूक रहता है तो पूरे दिन मस्तिष्क संतुलित रहता है और ठीक काम करता है । जो लोग उस समय सोते रहते हैं, उनके सेराटोनिन का स्राव ठीक से नहीं होता । फलस्वरूप तनाव, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, उदासी आदि हावी रहते हैं । ब्रह्ममुहूर्त में जागृत रहना हमारी परंपरा है। पूज्य गुरुदेव के साधुजीवन के सत्तर वर्ष हो गए। कितने दिन वे चार बजे न उठे, यह गिनना पड़ेगा। इन सत्तर वर्षों में शायद पन्द्रह-बीस दिन ही गिनने पर निकलें। एक नियमित क्रम चला और उसका परिणाम है - गुरुदेव का मस्तिष्क आज भी उतना ही स्वस्थ है, जितना बीस वर्ष के युवक का है। इसका कारण क्या है ? हम कारण का अनुशीलन करें।
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गति का रहस्य
छापर की घटना है । एक भाई ने कहा - आचार्य श्री ! आप सत्तर वर्ष के हैं, फिर भी इतनी तेज गति से चलते हैं। मैं साठ का ही हूं और चल नहीं सकता। मैंने पूछा- क्या मिठाइयां खाते हो ? बोला - खूब खाता हूं। मैंने कहा- बस यही अन्तर है । गुरुदेव चीनी भी नहीं खाते और तुम मिठाइयां खूब खाते हो । चीनी छोड़कर देखो, तुम भी चलने लग जाओगे ।
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हर घटना के पीछे कोई न कोई कारण होता है । बहुत महत्त्व है चार बजे उठने का । नौ-दस बजे सो जाएं, यह भी आवश्यक है । दिन भर विश्रान्ति के बाद सारे तंत्र विश्राम चाहते हैं । उस समय हम जागने का प्रयत्न करते हैं तो भीतर से प्रतिक्रिया होनी शुरू हो जाती है और जो नींद का समय है, वह अतिक्रान्त हो जाता है । लीवर फंक्शन करे, उस समय न खाओ तो पाचनतंत्र कमजोर हो जाएगा। नींद का समय आए और नींद न लो तो नींद रूठ जाएगी। हम उसका आदर नहीं करते हैं तो वह हमारा आदर क्यों करेगी ? फिर नींद की गोलियों से उसे मनाना पड़ता है ।
कहावतों में सच
जागने का अपना समय है, सोने का अपना समय है । खाने का अपना समय हैं और पानी पीने का अपना समय है । लेणं लेणकाले-बैठने का भी अपना समय है। ठीक समय पर काम करें। बहुत सारी पुरानी कहावतें इसी सचाई
समय का प्रबंधन : ८६
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