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का सम्यक् नियोजन वही कर सकता है, जो 'ना' कहना जाने, जिसमें अस्वीकार की शक्ति हो । जिन लोगों ने केवल स्वीकार को ही शक्ति माना है, वे भ्रम में हैं। अस्वीकार के बिना स्वीकार की शक्ति कमजोर हो जाती है । हां और ना - ये दोनों शब्द हमारी जीवन की दिशा का निर्धारण करते हैं। हां जरूरी है तो ना भी उससे कम जरूरी नहीं है । समय नियोजन के लिए तो 'ना' बहुत ही जरूरी है । जिनमें ना कहने की क्षमता नहीं है, वे दूसरों को भी धोखा देते हैं, अपने को भी धोखा देते हैं। उन्हें यह उपालम्भ भी सुनना पड़ता है- आपने मेरा इतना समय बर्बाद कर दिया, पहले ही मना कर देते । यह बहुत आवश्यक है कि हम 'अस्वीकार' को भी समझें ।
टाइम मैनेजमेंट : स्वरोदय
समय का नियोजन और प्रबंधन क्यों आवश्यक है ? वह इसलिए है कि हमारा हर कार्य काल सापेक्ष चलता है । पाश्चात्य विचारकों ने टाइम मैनेजमेंट के जो सूत्र दिए हैं, वे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं किन्तु वे आत्मनिरीक्षण से कुछ भिन्न नहीं हैं । ऐसा लगता है - उन्होंने आत्मनिरीक्षण को ही एक भिन्न नाम से प्रस्तुत कर दिया। हम प्राचीन भारतीय चिन्तन को देखें । एक सिद्धान्त है स्वरोदय का । भारत में स्वरोदय का बहुत विकास हुआ है । मैं मानता हूं-टाइम मैनेजमेंट का जो सूत्र है, उसके अंतरंग पक्ष में स्वरोदय का बहुत शक्तिशाली सूत्र है । स्वरोदय शास्त्र में स्वास्थ्य पर विचार किया गया, सफलता पर विचार किया गया, जय-पराजय पर विचार किया गया। किस समय किस व्यक्ति से बात करनी चाहिए। किस समय किस व्यक्ति से मिलना चाहिए, किस समय अपने नेता के सामने बात रखनी चाहिए, जिससे सफलता मिले, पराजय न हो । स्वरोदय में इस पर बहुत चिन्तन किया गया । स्वरोदय में जहां स्वर का संबंध है, वहां काल का भी संबंध है ।
कालचक्र : स्वर-चक्र
काल और स्वर - दोनों में अंतः संबंध हैं । सूर्योदय से स्वर प्रारंभ होता है । सूर्योदय के समय किस स्थिति में कौन-सा स्वर काम कर रहा है ? चन्द्रस्वर काम कर रहा है या सूर्यस्वर काम कर रहा हैं ? अधिकारी को किसी की
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समय का प्रबंधन : ८७
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